Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे अथ के ते दींकराः १ दर्गीकरा अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-आशीविषाः, दृष्टि विषाः, उग्रविषाः, भोगविषाः, त्वग्विषाः, लालाविषाः, उच्छ्यासविषाः, निःश्वासविषाः, कृष्णसर्पाः, श्वेतसः, काकोदराः, दह्यपुष्पाः, कोलाहाः मेलिमिन्दाः, शेषेन्द्राः ये चान्ये तथाप्रकाराः, ते एते दर्वीकराः अथ के ते मुकु, लिमः ? मुकुलिनोऽनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-दिव्याकाः, गोनसाः, कषाधिकाः, ___(से कि त अही ?) अहि-सर्प कितने प्रकार के होते हैं ? (अही दुविहा पण्णत्ता) सर्प दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वह इस प्रकार (दव्चीकरा य) फण वाले (मउलिणो य) विना फण के (से किं तं दव्वीकरा ? फण वाले कितने प्रकार के हैं ? (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (आसीविसा) दाढों में विष वाले (दिविविसा) दृष्टि में विष वाले (उग्गविसा) उग्न विषवाले (भोगविसा) फण में विष वाले (तयाविसा) त्वचा में विषवाले (लालाविसा) लार में विषयाले (ऊसासविसा) उच्छ्वास में विषयाले (नीसासविसा) निश्वास में विषयाले (कण्हसप्पा) कृष्ण सर्प (सेयसप्पा) श्वेत सर्प (काओदरा) काकोदर (दज्झपुष्पा) दह्यपुष्प (कोलाहा) कोलाह (मेलिभिंदा) मेलिभिन्द (सेसिंदा) शेषेन्द्र (जे यावन्ने तहप्पगारा) और भी इसी प्रकार के । (से कित मउलिणो ?) मुकुली-विना फण के सर्प कितने प्रकार के हैं । (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं
(से कि तं अही ?) -452-स५ । ५२ना खाय छ (अहि दुविहा पण्णत्ता) सो में प्रा२ना ४ा छ (तं जहा) तेस॥ २॥ २ (दव्वीकरा य) ३वास (मउलिणी य) ३५ पान।
(से कि तं दव्वीकरा ?) वाणा टसी तना छ ? (दव्बीकरा) ३ पामा सो (अणेगविहा पण्णत्ता) मने प्रारना ४i छ (तं जहा) तेसो ।
४॥२ छ (आसीविसा) वाढमा २वा (दिट्ठीविसा) दृष्टिमा २१।। (उग्गविसा) अविषाणा (भोगविसा) ३शुभा२वा (तयापिसा) पयामा ३२॥ (लालाविसा) मा उP (ऊसासविसा) २७पासमा राणा (नीसास विसा) निश्वासमा २वा (कण्हसप्पा) स५ (सेयसप्पा) श्वेतस५ (काओदरा) ४॥४२॥ (दज्झ पुप्फा) ६५०५ (कोलाहा) बाड (मेलिमिंदा) भेलिभिन्६ सिसिदा) शेषेन्द्र (जे यावन्ने तहप्पगारा) मी ५ वी तना
(से किं तं मउलिणो ?) भुसी ३५ ॥२॥ सपा ना ४॥ छ (अणेगविहा) भने ५४२॥ ४॥ छ (तं जहा) तेया २॥ रीते छ (दिव्वागा)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧