Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका प्र, पद १ सू.२२ भङ्गप्रकारेण अनन्तजीवादि निर्देश ३१५ अनन्तजीवं विजानीहि ॥१॥ गूढशिराकं पत्रं, सक्षीरं यश्च भवति निःक्षीरम् । यदपि च प्रणष्टसन्धि, अनन्तजीवं विजानीहि ॥२॥ पुष्पाणि जलजानि स्थलजानि च वृन्तबद्धानि च नालबद्धानि च । संख्येयानि बोद्धव्यानि अनन्तजीवानि च ॥३॥ यानि कानिचित् नालिका वद्धानि पुष्पाणि संख्येयजीवकानि भणिजाता हुआ (गंठी) गांठ (चुन्नघणो) रज से व्याप्त (भये) हो (पुढविसरिसेण) पृथ्वी के समान (भेएण) भेद से (अगंतजी) अनन्त जीव (वियाणाहि) जानो। ___ (गूढसिराणां) जिसकी शिराएं गूढ हो (पत्तं) पत्र (सच्छीरं) दूध. सहित (जं) जो (च) और (होइ) होता है (निच्छोरं) विनादूध का (जं पि य) और जो भी (पणट्ठसंधि) अदृश्य संधि वाला (अणंतजीवं) अनन्त जीवों वाला (वियाणाहि) जानो।
(पुप्फा) पुष्प (जलया) जल में उत्पन्न (थलया) स्थल में उत्पन्न (विंद बद्धा) जो वृन्त बद्ध हों (य) और (नालबद्धाय) नाल से बद्ध हों (संखिज्ज) संख्यात जीवों वाले (असंखिज्जा) असंख्यात जीवों वाले (बोद्धव्या) जानने चाहिए (अणंत जीवा य) और अनन्त जीवों वाले।
(जे) जो (केइ) कोई (नालिकाबद्धा) नालबद्ध (पुप्फा) पुष्प (संखिज्जजीविया) संख्यात जीव वाले (भणिया) कहे गए हैं (निहुआ) थूअर के फूल (अणंत जीया) अनन्त जीवों वाले (जे यावण्णे तहाविहा) जो अन्य थूअर के फूलों के समान हैं, वे भी अनन्त जीव है।
(भएण) मेथी (अगत जीवं) मनन्त ७१ (वियाणाहि) and
(गूढसिराग) रेनी शिरा गूढ डाय (पत्तं) पत्र (सच्छीई) दूध सहित (ज) २ (च) मन (होई) डाय छ (निच्छिर) धरना (जं पिय) भने २ ५५५ (पणसंधि) महेश्य सचिवाणा (अणतजीवा) मनन्तवा (वियाणाहि) ।
(पुप्फा) ५०५ (जलया) माथी उत्पन्न (थलया) थमाथी उत्पन्न (विन्द बद्धा) २ वृन्त पडाय (य) मने (नालबद्धा व) नयी पडाय (संखिज्ज) सण्यात ७ वा (असंखिज्जा) मसयत ७ वा. (बोद्धव्वा) पा नये (अणतजीवा य) मने मन्नत व पा.
(जे) २ (केइ) । (नालिकाबद्धा) नlana (पुष्का) ४०५ (संखिज्ज जीविया) सन्यात १ वा (भणिया) ४सा छ (निहुआ) थु१२ना एस (अणत जीवा) मनन्त । वा (जे यावण्णे तहाविह।) मी थूमना सना सरमा छ. तेसो पशु मनन्त ७५ छे.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧