Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.२४ साधारणजीवलक्षणनिरूपणम् ३३१ त्तगा वकमंति । जत्थ एगो तत्थ सिय संखिजा लिय असं. खिजा सिय अणता। एएसि णं इमाओ गाहाओ अणुगंतव्याओ, तं जहा-कंदा ये कंदमूला य, रुक्खमूलाइयावरे । गुच्छा य गुम्म वल्लीय, वेणुयाणि तणाणि य ।॥१॥ पंउमुप्पल संघाडे, हेढेय सेवाल किन्नए पणए। अवएय कच्छ भाणी, कंदुक्के गूणवीसइमे ॥२॥ तय-छल्लि पवालेसु य, पत्त-पुप्फफलेसु य। मूलग्ग-मज्झ-वीएसु, जोणीकस्स वि कित्तिया॥३॥ से तं साहारणसरीर बायरपणस्तइकाइया (से तं साहारणसरीरवणस्सइकाइया)। से तं बायरयणस्संइकाइया। से तं वणस्सइकाइया। से तं एगिदिया ॥सू०२४॥
छाया- समकं व्युत्क्रान्तानां, समकं तेषां शरीरनिर्वृत्तिः । समकम् आनग्रहणम्, समकम् उच्छ्वासनिःश्वासौ ॥१॥ एकस्य तु यद् ग्रहणं बहूनां साधारणानां तदेव । यद् बहुकानां ग्रहणं, समासतस्तदपि एकस्य ॥२॥ साधारणमाहारः, साधारणमानप्राणग्रहणं च । साधारणजीवानां, साधारणलक्षणमेतत् ॥३॥ यथा
शब्दार्थ-(समगं) एक साथ (वक्ताणं) जन्मे हुए (समगं) एक साथ (तेसिं) उनकी (सरीरनिव्वत्ती) शरीर की निष्पत्ति (समगं) एक साथ (आणुग्गहणं) प्राणापान के योग्य पुद्गलों का ग्रहण (समगं) एक साथ (ऊसासनीसासो) उच्छ्वास और निःश्वास ।
(इक्कस्स) एक जीव का (उ) तो (जं) जो (गहणं) ग्रहण (बहूण) बहुत (साहारणाण) साधारण जीवों का (तं चेव) वही (जं) जो (बहयाणं) बहुतों का (गहणं) ग्रहण (समासओ) संक्षेप से (तंपि) वह भी (इक्कस्स) एक का । (साहारणमाहारो) साधारण आहार (साहारणमाणपाणगहणं च)
शहाथ-(समगं) से साथे (वक्ता ण) ४-मेलामा (समगं) मे साथे (तेसिं) तेमानी (सरीरनिव्वत्ति) शरी२नी निष्पत्ति (समगं) मे४ साथे (आणुगहण)
पानने योग्य पुनसानु अडए (समग) ४ साथे (ऊसासनिसासो) २७पास मन निश्वास (इक्कस्स) २४ ९०पना (उ) ते (जं) रे (गहण) अड (बहूणं) घर (साहारणाण) साधारण वानर (तं चेव) ते (जं) (बहुयाण) घाना
(गहण) ७ (समासओ) सपथी (तं पि) ते ५५ (इक्कस्स) मेना
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧