Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूचे य' पर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च, अपर्याप्तकसूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्य, नन पर्याप्तका:-पर्याप्तिमन्तश्च ते सूक्ष्माश्चेति पर्याप्तक सूक्ष्मास्ते च ते वनस्पतिकायिकाः, तद्भिन्ना एव अपर्याप्तसूक्ष्मवनस्पतिकायिका उच्यन्ते, प्रकृतमुपसंहरन्नाह-'से तं सुहुमवणस्सइकाइया' ते एते-पूर्वोक्ताः , सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः लोकत्रयवर्तिनः कज्जलकूपिकावत् संभृताः सन्ति व्यपदिश्यन्ते, अथ-बादरयनस्पतिकायिकप्रकारान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं बायरवणस्सइकाइया' 'से' अथ 'किं त' के ते कतिविधा इत्ययः बादरवनस्पतिकायिकाः-स्थूलयनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-बायरवणस्सइकाइया दुविहा पणत्ता' बादरवनस्पतिकायिकाः द्विविधाः-द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-उक्ताः, 'तं जहा-तद्यथा'पत्तेयसरीरवायरवणस्सइकाइया, साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया' प्रत्येक शरीर बादरवनस्पतिकायिकाच, साधारण शरीर बादरवनस्पतिकायिकाश्च, तर लाते हैं और जो अपनी पर्याप्तियां पूरी न कर पाए हों वे अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक कहलाते हैं ।
उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं-ये सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों की प्ररूपणा हुई जो तीनों लोकों में ऐसे व्याप्त हैं जैसे काजल की डिबिया में काजल भरा रहता है। ____ अव बादर वनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा करते हैं-चादर वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया-बादर वनस्पतिकायिक जीव भी दो प्रकार के हैं। प्रत्येक शरीर बादर वनस्पनिकायिक और साधारण शरीर बादर वनस्पतिकापिक । जिन वनस्पतिकायिक जीवों का शरीर प्रत्येक होता है-अलग-अलग होता है वे प्रत्येक शरीर कहलाते हैं अर्थात् एक शरीर में एक जीव हो છે અને જેઓ પિતાની પર્યાસિઓ પૂર્ણ ન કરી શક્યા હોય તેઓ અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિક કહેવાય છે?
ઉપસંહાર કરતા હવે સૂત્રકાર કહે છે આ સૂમ વનસ્પતિ જીવની પ્રરૂપણું થઈ તેઓ ત્રણે લેકમાં વ્યાપ્ત છે; જેમ કાજળની ડબ્બીમાં કાજળ मयु २९ छ.
હવે બાર વનસ્પતિકાયિકની પ્રરૂપણ કરે છે-બાર વનસ્પતિકાયિક જીવ કેટલા પ્રકારના છે?
શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપ્ય–બર વનસ્પતિકાયિક જીવ પણ બે પ્રકારના છે. પ્રત્યેક શરીર બાદરે વનસ્પતિકાયિક. અને સાધારણ શરીર બાદર વન. સ્પતિ કાયિક,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧