Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२४
श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
अष्टमी के पौषधोपवास का महोत्सव' हो या इसी तरह अर्द्धमास, एक मास, दो, तीन, चार, पांच या छः मास की पौषधोपवास (तपश्चर्या) का उत्सव हो या ऋतु, ऋतु सन्धि (दो ऋतुओं का सन्धि काल) और ऋतु परिवर्तन (ऋतु का परिवर्तन- एक ऋतु के अनन्तर दूसरी ऋतु का आरम्भ होना) का महोत्सव हो और उसमें शाक्यादि भिक्षु, श्रमण- ब्राह्मण, अतिथि, रंक - भिखारी आदि को भोजन कराया जा रहा हो । जब कि यह भोजन आधाकर्मदोष से युक्त नहीं है, फिर भी सूत्रकार ने इसके लिए जो 'अफासुयं' शब्द का प्रयोग किया है, इसका तात्पर्य यह है कि ऐसा आहार तब तक साधु के लिए अकल्पनीय है जब तक वह पुरुषान्तर कृत नहीं हो जाता है। यदि यह आहार एकान्त रूप से शाक्यादि भिक्षुओं को देने के लिए ही बनाया गया है और उसमें से परिवार के सदस्य एवं परिजन आदि अपने उपभोग में नहीं लेते हैं, तब तो साधु को वह आहार नहीं लेना चाहिए। क्योंकि इससे उन भिक्षुओं को अन्तराय लगेगी। यदि परिवार के सदस्य एवं स्नेही - सम्बन्धी उसका उपभोग करते हैं, तो उनके उपभोग करने के बाद (पुरुषान्तर होने.. पर) साधु उसे ग्रहण कर सकता है।
इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी उत्सव के प्रसंग पर अन्य मत के भिक्षु भोजन कर रहे हों तो उस समय वहां साधु का जाना उचित नहीं है। उस समय वहां नहीं जाने से मुनि की संतोष एवं त्याग वृत्ति प्रकट होती है, उन भिक्षुओं के मन में किसी तरह की विपरीत भावना जागृत नहीं होती। अतः साधु को ऐसे समय विवेक पूर्वक कार्य करना चाहिए ।
साधु को किस कुल में आहार के लिए जाना चाहिए, इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते
हैं
मूलम् - से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जाई पुण कुलाई जाणिज्जा, तं जहा - उग्गकुलाणि वा भोगकुलाणि वा राइन्नकुलाणि वा खत्तियकुलाणि वा इक्खागकुलाणि वा हरिवंसकुलाणि वा एसियकुलाणि वा वेसियकुलाणि वा गंडागकुलाणि वा कोट्टाग कुलाणि वा गामरक्खकुलाणि वा बुक्कासकुलाणि वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु कुलेसु अदुगुछिएसु अगरहिए असणं वा ४ फासुयं जाव पडिग्गाहिज्जा ॥११॥
छाया - स भिक्षुर्वा० यावत् सन् तद् यानि पुनः कुलानि जानीयात्, तद्यथाउग्रकुलानि वा भोगकुलानि वा राजन्यकुलानि वा क्षत्रियकुलानि वा इक्ष्वाकुकुलानि वा हरिवंशकुलानि वा एसिय- एष्यकुलानि वा वैश्यकुलानि वा गण्डककुलानि वा कुट्टाककुलानि वा ग्रामरक्षककुलानि वा वुक्कासतन्तुवायकुलानि वा अन्यतरेषु वा तथा प्रकारेषु वा कुलेषु
१
तद्यथा - अष्टम्यां पौषध- उपवासादिकोऽष्टमीपौषधः स विद्यते येषां तेऽष्टमी पौषधिका - उत्सवाः तथाऽर्द्धमासिकादयश्च ऋतुसन्धि- ऋतोः पर्यवसानम् ऋतुपरिवर्त्तः - ऋत्वन्तरम् - आचारांग वृत्ति ।