Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन मूलम्- समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमदुस्समाए समाए वीइक्कंताए, दूसमसुसमाए समाए बहुविइक्कंताए पन्नहत्तरीए वासेहि मासेहि य अद्धनवमेहि सेसेहिं जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं महाविजयसिद्धत्थपुप्फुत्तरवरपुंडरीयदिसासोवत्थियवद्धमाणाओ, महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणंचुए चइत्ता इह खलुजंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंमि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरस्सगुत्ताए सीहुब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिंसि गब्भं वक्कंते। ___छाया- श्रमणो भगवान् महावीरः अस्यां अवसर्पिण्यां सुषमसुषमायां समायां व्यतिक्रान्तायां, सुषमायां समायां व्यतिक्रान्तायां, सुषमदुषमायां समायां व्यतिक्रान्तायां, दुषमसुषमायां समायां बहुव्यतिक्रान्तायां पंचसप्तति वर्षेषु मासेषु च अर्द्धनवमेषु शेषेषु योऽसौ ग्रीष्मस्य चतुर्थो मासः अष्टमः पक्षः आषाढशुद्धः (आषाढ़ शुक्लः) तस्य आषाढ़शुद्धस्य षष्ठीयक्षेण हस्तोत्तराभिः नक्षत्रेण योगमुपागते महाविजयसिद्धार्थपुष्योत्तरवरपुण्डरीकदिक्स्वस्तिक वर्द्धमानात् महाविमानात् विंशतिसागरोपमानि आयुष्कं पालयित्वा आयुःक्षयेण स्थितिक्षयेण भवक्षयेण च्युतः च्युत्वा इह खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे दक्षिणार्द्धभरते दक्षिणब्राह्मणकुण्डपुरसंनिवेशे ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य कुडालगोत्रस्य देवानन्दाया ब्राह्मण्या: जालन्धरगोत्रायाः सिंहोद्भवभूतेन आत्मना कुक्षौ गर्भे व्युत्क्रान्तः।
पदार्थ-समणे-श्रमण।भगवं-भगवान।महावीरे-महावीर।इमाए-इस।ओसप्पिणीए-अवसर्पिणी काल के। सुसमसुसमाए-सुषम-सुषम नाम वाले चार कोटा-कोटी सागर प्रमाण वाले। समाए-प्रथम आरे के। वीइक्कंताए-व्यतीत हो जाने पर, तथा। सुसमाए समाए वीइक्कंताए-सुषमा नाम वाले तीन कोटा-कोटी सागर प्रमाण वाले दूसरे आरे के बीत जाने पर।सुसमदुस्समाए समाए वीइक्कंताए-सुषम-दुषम नाम वाले दो कोटा-कोटी सागर प्रमाण वाले तीसरे आरे के बीत जाने पर तथा। दुसमसुसमाए समाए बहुवीइक्कंताएदुषम-सुषम नाम वाले चतुर्थ आरे के बहुत बीत जाने पर, अर्थात् चतुर्थ आरक बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटा कोटी सागरोपम प्रमाण का होता है, उसके केवल। पन्नहत्तरीए वासेहि-७५ वर्ष। य-और। अद्धनवमेहिं मासेहि-साढ़े आठ मास। सेसेहि-शेष रहने पर। जे-जो। से-यह। गिम्हाणं-ग्रीष्म ऋतु का। चउत्थे मासेचौथा मास।अट्ठमे पक्खे- आठवां पक्ष। आसाढसुद्धे-आषाढ़ शुक्ल। णं-वाक्यालंकार में है। तस्स-उस।
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