Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 491
________________ ४५६ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध सर्वं मे अकरणीयं पाप कर्म, इति कृत्वा सामायिकंचारित्रं प्रतिपद्यते, प्रतिपद्य देवपरिषदं च मनुजपरिषदं च आलेख्य चित्रभूतमिवस्थापयति। पदार्थ- तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय में। जे से-जो वह। हेमंताणंहेमन्तऋतु का-शीतकाल का। पढमे मासे-प्रथम मास। पढमे पक्खे-पहला पक्ष। मग्गसिरबहुले-मार्गशीर्ष का पहला पक्ष अर्थात् कृष्ण पक्ष का।णं-वाक्यालंकारार्थक है। तस्स-उस।मग्गसिरबहुलस्स-मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष के। दसमी पक्खेणं-दशमी के दिन।सुव्वएणं-सुव्रत नाम वाले।दिवसेणं-दिन में।विजएणं मुहुत्तेणंविजय मुहूर्त में तथा। हत्थुत्तरानक्खत्तेणं-उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ। जोगोवगएणं-चन्द्रमा का योग आने पर।पाईणगामिणीए छायाए-पूर्व दिशा गामी छाया के होने पर।बिइयाए पोरिसीए-द्वितीय प्रहर के बीत जाने पर।अपाणएणं-निर्जल-बिना पानी के। छट्टेणं भत्तेणं-षष्ट भक्त दो उपवास से युक्त। एगसाडगमायाएकेवल एक देवदूष्य वस्त्र को लेकर। चंदप्पभायाए-चन्द्रप्रभा नामक। सिवियाए-शिविका जो कि। सहस्सवाहिणीयाए-सहस्त्र पुरुषों से उठाई जा सकती है, उस में बैठकर। सदेवमणुयासुराए-देव, मनुष्य और असुर कुमारों की। परिसाए-परिषद् के साथ।समणिजमाणे-निकलते हुए।उत्तर-खत्तियकुंडपुरसंनिवेसस्सउत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश के। मझमझेणं-मध्य २ में से होकर। निग्गच्छइ २-निकलते हैं और वहां से निकल कर। जेणेव-जहां पर। नायसंडे उज्जाणे-ज्ञात खण्ड नामक उद्यान था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छइ २ त्ता-आते हैं और वहां आकर।ईसिं-थोड़ी सी।रयणिप्पमाणं-हाथ प्रमाण।अच्छोप्पेणं-ऊंची। भूमिभाएणंभूमि भाग से। सणियं २-शनैः २। चंदप्पभं-चन्द्रप्रभा नाम की। सिवियं-शिविका। सहस्सवाहिणिं-सहस्त्र वाहिनी को। ठवेइ २-स्थापन करते हैं उसे स्थापन करने के बाद फिर। सणियं २-शनैः २। चंदप्पभाओभगवान उस चन्द्रप्रभा । सीयाओ-शिविका।सहस्सवाहिणीओ-सहस्र वाहिनी से। पच्चोरुहइ २-नीचे उतरते हैं और उस से उतर कर फिर। सणियं २-शनैः २। पुरत्थाभिमुहे-पूर्वाभिमुख होकर। सीहासणे-सिंहासन पर। निसीयइ २ ता-बैठते हैं उस पर बैठने के अनन्तर। आभरणालंकारं-भगवान आभरण और अलंकारों को। ओमुअइ-उतारते हैं। णं-वाक्यालंकारार्थक है। तओ-तत्पश्चात्। वेसमणे देवे-वैश्रमण देव। जन्नुवायपडिओ-भक्ति पूर्वक जानु को नीचे कर विनय पूर्वक। भगवओ महावीरस्स-भगवान महावीर के। आभरणालंकारं-आभरण और अलंकारों को। हंसलक्खणेणं-हंसलक्षण-हंस के समान श्वेत उज्ज्वल हंस चिन्ह युक्त। पडेणं-पट के द्वारा। पडिच्छइ-ग्रहण करता है। तओ णं-तदनन्तर। समणे-श्रमण। भगवंभगवान।महावीरे-महावीर।दाहिणेणं-दक्षिण हाथ से।दाहिणं-दक्षिण दिशा के।वामेणं-और वाम हाथ से। वाम-वाम दिशा के केशों का। पंचमुट्ठियं-पांच मौष्टिक । लोयं करेइ-लोच करते हैं। तओ-तदनन्तर। सक्के-शक्र। देविंदे-देवेन्द्रादेवराया-देवराज।समणस्स-श्रमण।भगवओ-भगवान महावीरस्स-महावीर के। जन्नुवायपडियाए-जानु नीचे करके चरण कमलों में पड़कर अर्थात् विनय पूर्वक। वइरामएणं-वज्रमय। . थालेणं-थाल में। केसाई-भगवान के केशों को।पडिच्छइ २ ता-ग्रहण करता है, वह उन्हें ग्रहण करके कहता है। भंते-हे भगवन् ! अणुजाणेसि-आपकी आज्ञा हो तो मैं इन्हें ग्रहण करूं।त्तिकटु-ऐसा कहकर उन केशों को। खीरोयसागरं-क्षीरोदधि समुद्र में ले जाकर। साहरइ-प्रवाहित कर देता है। तओ णं-तदनन्तर। समणे

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