Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 502
________________ ४६७ पञ्चदश अध्ययन ___ • भगवान को केवल ज्ञान होने के बाद देवों ने उसका महोत्सव मनाया, उसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्- जण्णं दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स निव्वाणे कसिणे जाव समुप्पन्ने तण्णं दिवसं भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिदेवेहिं य देवीहि य उवयंतेहिं जाव उप्पिंजलगभूए यावि होत्था। - छाया- यद् दिवसं श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य निर्वाणः कृत्स्नः यावत् समुत्पन्नः तद् दिवसं भवनपतिवाणव्यन्तरज्योतिषिकविमानवासिदेवैश्च देवीभिश्च उत्पतद्भिः यावद् उत्यिंजलकभूतश्चापि अभवत्। पदार्थ-जण्णं दिवस-जिस दिन।समणस्स-श्रमण। भगवओ-भगवान।महावीरस्स-महावीर स्वामी को। निव्याणे-निर्वाण-निर्मल। कसिणे-सम्पूर्ण। जाव-यावत् केवल ज्ञान-केवल दर्शन। समुप्पन्नेउत्पन्न हुआ।तण्णं दिवसं-उसी दिन।भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिदेवेहि-भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों। य-और। देवीहि-देवियों से। य-पुनः। उवयंतेहि-आकाश से देवों और देवियों के आने-जाने से। जाव-यावत्। उप्पिंजलगभूए यावि होत्था-आकाश में उद्योत और देवों से आकाश आकीर्ण हो गया था। मूलार्थ-जिस दिन श्रमण भगवान महावीर स्वामी को केवल ज्ञान और केवल दर्शन उत्पन्न हुआ उसी दिन भवनपति, वाण व्यन्तर-ज्योतिषी और वैमानिक देवों के आने से आकाश आकीर्ण हो रहा था और वहां का सारा आकाश प्रदेश जगमगा रहा था। हिन्दी विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि जब भगवान को केवल ज्ञान, केवल दर्शन हुआ तो उनके द्वारा होने वाले अनन्त उपकार का स्मरण करके तथा उस पूर्ण आत्मा के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पण करने के लिए भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव वहां आए और उन्होंने कैवल्य महोत्सव मनाया। . अब भगवान द्वारा दी गई धर्मदेशना (उपदेश) का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्- तओणं समणे भगवं महावीरे उप्पन्नवरनाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमिक्ख पुव्वं देवाणं धम्ममाइक्खइ, तओ पच्छा मणुस्साणं। छाया- ततः श्रमणो भगवान् महावीरः उत्पन्नवरज्ञानदर्शनधरः आत्मानं च लोकं च अभिसमीक्ष्य पूर्व देवानां धर्ममाख्याति ततः पश्चात् मनुष्याणाम्। पदार्थ-णं-वाक्यालंकार में है। तओ-तदनन्तर। उप्पन्नवरनाणदंसणधरे-उत्पन्न प्रधान ज्ञान दर्शन के धारक। समणे-श्रमण।भगवं-भगवान। महावीरे-महावीर ने। अप्पाणं च-अपनी आत्मा को और।लोगं च-लोक को।अभिसमिक्ख-केवल ज्ञान द्वारा जान कर। पुव्वं देवाणं-पहले देवों को।तओ पच्छा-तदनन्तर। मणुस्साणं-मनुष्यों को। धम्ममाइक्खइ-धर्म का उपदेश दिया।

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