Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन आदि) ग्रहण की थी । भगवान महावीर ने एक महीने की तपस्या के पारणे के दिन सरस आहार ग्रहण किया था। और आशातना के विषय का वर्णन करते हुए आगम में बताया गया है कि यदि शिष्य गुरु के साथ आहार करने बैठे तो वह सरस आहार को शीघ्रता से न खाए। और छेद सूत्रों में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि .साधु मैथुन सेवन की दृष्टि से घी, दूध आदि विगय का सेवन करता है तो उसे प्रायश्चित आता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अपवाद मार्ग में साधु सरस आहार ग्रहण कर सकता है। परन्तु उत्सर्ग मार्ग में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए उसे सरस आहार नहीं करना चाहिए।
ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए साधु को स्त्री, पशु एवं नपुंसक से रहित मकान में ठहरना चाहिए। क्योंकि स्त्री आदि का अधिक संसर्ग रहने से मन में विकारों की जागृति होना संभव है। इससे उसकी साधना का मार्ग अवरूद्ध हो जाएगा। अतः साधु को इनसे रहित स्थान में ही ठहरना चाहिए।
इस तरह चौथे महाव्रत के सम्बन्ध में दिए गए आदेशों का आचरण करना तथा उनका सम्यक्तया परिपालन करना ही चौथे महाव्रत की आराधना करना है और इस तरह उसका परिपालन करने वाला निर्ग्रन्थ ही आत्मा का विकास कर सकता है।
अब पांचवें महाव्रत का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- अहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि, से अप्पं वा बहुं वा अणुंवा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं गिण्हिज्जा, नेवन्नेहिं परिग्गहं गिहाविजा, अन्नपि परिग्गहं, गिण्हतं न
समणुजाणिजा जाव वोसिरामि॥ - छाया- अथापरं पंचमं भदन्त ! महाव्रतं, सर्वं परिग्रहं प्रत्याख्यामि तद् अल्पं वा बहुं
वा अणुं वा स्थूलं वा चित्तवन्तं वा अचित्तं वा नैव स्वयं परिग्रहं गृहीण्यात् नैवान्यैः परिग्रहं ग्राह्येत् अन्यमपि परिग्रहं गृण्हन्तं न समनुजानीयात् यावत् व्युत्सृजामि।
पदार्थ-अहावरं-अथ अपर।पंचम-पांचवां। महव्वयं-महाव्रत कहते हैं। भंते-हे भगवन्।सव्वंसर्व प्रकार के। परिग्गह-परिग्रह का। पच्चक्खामि-परित्याग करता हूं। से-वह-साधु। अप्पं वा-अल्प। बहुं वा-बहुत।अणुं-अणु-सूक्ष्म।वा-अथवा।थूलं वा-स्थूल। चित्तमंतमचित्तमंतं वा-सचित्त या अचित्त अर्थात् चेतना युक्त शिष्यादि अथवा अचित्त-चेतना रहित वस्तु। एव-निश्चयार्थक है, इस प्रकार के। परिग्गह-परिग्रह को। सयं-स्वयं। न गिण्हिज्जा-ग्रहण नहीं करूंगा। नेवन्नेहि-न अन्य व्यक्ति से। परिग्गह-परिग्रह को। गिण्हाविजा-ग्रहण कराऊंगा।परिग्गह-परिग्रह को।गिण्हतं-ग्रहण करने वाले।अन्नंपि-अन्य व्यक्ति का।न
१ अन्तगड़ सूत्र। २ भगवती सूत्र शतक १५। ३ समवायांग सूत्र, ३३, दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र, दशा ३।
४ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए खीरं वा दहिं वा णवणीयं वा सप्पिं वा गुडं वा खंडं वा सक्करं वा मच्छंडियं वा अण्णयरं वा पणीयं आहारं आहारेइ आहारतं वा साइजइ। -निशीथ सूत्र ७९।