Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 554
________________ परिशिष्ट ५१९ इन्ही क्षेत्रों में उत्तरोत्तर और अनुत्तर रूप से पदन्यास करते हुए प्रकृष्टरूपेण उत्कर्षशील रहे, वर्धमान हुए। आप श्री जी ने संस्कृत और प्राकृत जैसी प्रचुर प्राचीन भाषाओं पर आधिपत्य संस्थापित किया, अन्यान्य-भाषाओं का अधिकृत रूप में प्रतिनिधित्व किया। आप श्री आगम-साहित्य के एक ऐसे आदित्य के रूप में सर्वतोभावेन प्रकाशमान हुए कि आगम-साहित्य के प्रत्येक अध्याय, प्रत्येक अध्याय के प्रत्येक पृष्ठ, प्रत्येक पृष्ठ की प्रत्येक पंक्ति, प्रत्येक पंक्ति के प्रत्येक शब्द के प्रत्येक अर्थ और उसके भी प्रत्येक व्युत्पत्ति लभ्य अर्थ के तल छट किंवा अन्तस्तल तक प्रविष्ट हुए। परिणाम-स्वरूप आपकी ज्ञान-चेतना व्यापक से व्यापक, ससीस से असीम और लघीयान् से महीयान् होती गई। निष्पत्तिरूपेण आप श्री जी अष्टदश-वर्षीय दीक्षाकाल में, गणधर के समकक्ष "उपाध्याय" जैसे गरिमा प्रधान पद से अलंकृत हुए। यह वह स्वर्णिम-प्रसंग है, जो आपके पाण्डित्य-पयोधि के रूप में उपमान है और प्रतिमान है। ____ आप श्री जी ने अपने संयम-साधना की कतिपय वर्षावधि में जो साहित्य-सर्जना की, वह ग्रन्थ-संख्या अर्धशतक से भी अधिक रही है। आप श्री जी विशिष्ट और वरिष्ठ निर्ग्रन्थ के रूप में भी ग्रन्थों और सूत्रों के जैन विद्यापीठ थे, विचारों के विश्वविद्यालय थे और चारित्र के विश्वकोष थे। आप यथार्थ अर्थ में एक सृजन धर्मी युगान्तकारी साहित्य-साधक थे। वास्तव में आप श्री जी अपने आप में अप्रतिम थे। आपने आगम साहित्य के सन्दर्भ में संस्कृत छाया, शब्दार्थ, मूलार्थ, सटीक टीकाएँ निर्मित की। आप द्वारा प्रणीत वाङ्मय का अध्येता इस सत्यपूर्ण तथ्य से परिचित हुए बिना नहीं रहेगा कि आप श्री विद्या की अधिष्ठात्री दिव्य देवी माता शारदा के दत्तक तनय नहीं, अपितु अंगजात आज्ञानिष्ठ यशस्वी अतिजात पुत्र थे। किं बहुना आचार्य देव प्रतिभाशाली पुरुष थे। महिमा-मण्डित आचार्यश्री वि० सं० 2003 में पंजाब-प्रान्तीय आचार्य पद से विभूषित हुए। तदनन्तर वि० सं० 2009 में आप श्री जी श्रमण-संघ के प्रधानाचार्य के पद पर समासीन हुए जो आपके व्यक्तित्व और कृतित्व की अर्थवत्ता और गुणवत्ता का जीवन्त रूप था। यह एक ऐतिहासिक स्वर्णिम प्रसंग सिद्ध हुआ। आप श्री जी ने गम्भीर विद्वत्ता, अदम्य साहस, उत्तम रूपेण कर्त्तव्य निष्ठा, अद्वितीय त्याग, असीम संकल्प, अद्भुत-संयम, अपार वैराग्य, संघ-संघटन की अविचल एकनिष्ठा से एक दशक-पर्यन्त श्रमण संघ को अधि-नायक के रूप में कुशल नेतृत्व प्रदान किया। आप श्री जी जब जीवन की सान्ध्यवेला में थे, तब कैंसर जैसे असाध्य रोग से आक्रान्त हुए। उस दारुण-वेदना में, आपने जो सहिष्णुता का साक्षात् रूप अभिव्यक्त किया, वह वस्तुतः यह स्वतः सिद्ध कर देता है कि आप सहिष्णुता के अद्वितीय पर्याय हैं, समता के जीवन्त आयाम हैं और सहनशीलता के मूर्तिमान् सजीव रूप हैं। किं बहुना, कोई इतिहासकार जब भी जैन शासन के प्रभावक ज्योतिर्मय आचार्यों का अथ से इति तक आलेखन करेगा तब आप जैसी विरल विभूति का अक्षरशः वर्णन करने में अक्षम सिद्ध होगा। जिन-शासन का यह महासूर्य वि० सं० 2019 में अस्तंगत हुआ। जिससे जो रिक्तता आई है वह अद्यावधि भी यथावत् है। ऐसे ज्योतिर्मय आलोक-लोक के महायात्री के प्रति, हम शिरसा-प्रणत हैं, सर्वात्मना-समर्पण भावना से श्रद्धायुक्त वन्दना करते हैं।

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