Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 552
________________ ५१७ परिशिष्ट 101..मनः पर्यव ज्ञान-अढाई द्वीप-समुद्र में स्थित सत्री मन युक्त पञ्चेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानने-देखने वाला ज्ञान 102. मातृ स्थान-माया, छल-कपट 103. मिश्र भाषा-जिस भाषा में सत्य और असत्य का मिश्रण हो 104. मुक्ति-कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त होना, मुक्त . जीवों के रहने का स्थान 105. मुखवस्त्रिका-वायु काय के जीवों की रक्षा के लिए मुँह पर बान्धने का वस्त्र 106. मोक-मूत्र 107. मोह-सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र का अवरोधक, राग-द्वेष, आसक्ति 108. योग-मम, वचन और काय-शरीर 109. योनि-संसारी जीवों के उत्पन्न होने का स्थान 110. रत्नाधिक-अपने से दीक्षा में ज्येष्ठ मुनि 111. लेश्या-मन के परिणाम 112. वर्द्धमान-भगवान महावीर का जन्म के समय माता-पिता द्वारा दिया गया नाम 113. वाचनाचार्य-आगमों का अध्ययन कराने वाले आचार्य 114. विकथा-व्यर्थ की कथा-वार्तालाप, विका रोत्पादक कथा 115. विराधना-संयम एवं सम्यग्दर्शन में दोष लगाना 116. विहार-साधु-साध्वी का एक गाँव से दूसरे गाँव को पैदल जाना 117.वृत्तिकार-आगमों की संक्षिप्त व्याख्या करने वाले 118. वेदनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से प्राणी सुख- दुःख का संवेदन करता है। 119. सचित्त-सजीव-जीव युक्त, सचेतन-चेतना युक्त 120. सद्धर्म-मण्डन-जिसमें वीतराग प्ररूपित सत्य धर्म का वर्णन है, स्व.आचार्य श्री जवाहरलाल जी म द्वारा रचित ग्रन्थ 121. सन्निवेश-मोहल्ला 122. समिति-विवेक पूर्वक, चलने, बोलने, आहार ग्रहण करने, उपकरण लेने-रखने, मल-मूत्र का त्याग करने आदि की क्रियाएं करना, विवेक पूर्वक की जाने वाली शुभ प्रवृत्ति 123. सर्वभावदर्शी-विश्व में स्थित समस्त पदार्थों के भावों एवं पर्यायों का ज्ञाता 124. सर्वज्ञ प्रणीत-सर्वज्ञ द्वारा प्ररूपित या उपदिष्ट 125. सहधर्मी-समान धर्म या आचार वाला 126. सागार-घर-बार सहित गृहस्थ, श्रावक 127. सागारिक संथारा-आगार सहित जीवन पर्यन्त अनशन व्रत स्वीकार करना 128. सान्त-अन्त सहित, सीमा युक्त, जिसका अन्त होता है 129. सामायिक-४८ मिनट या जीवन पर्यन्त के लिए की जाने वाली समभाव की साधना 130. सुश्रुत संहिता-आयुर्वेद का एक ग्रंथ 131. संक्लिष्ट कर्म-तीव्र कषाय, प्रगाढ़ आसक्तिपूर्वक बांधे गए कर्म 132. संथारा-जीवन पर्यन्त के लिए आहार-पानी एवं ___पाप कर्मों का त्याग करना 133.संलेखना-आत्मा का सम्यक् प्रकार से लेखन अवलोकन करना, कषायों को पतला करना 134. संवर-कर्मों के आगमन को रोकने की साधना 135. संस्तारक-घोस-फूस का बिछौना, तृण शय्या 136. स्तेय-चौर्य कर्म 137. स्थावर-स्थिर काय वाले प्राणी-जिनके सिर्फ काया-शरीर ही होता है। . 138. स्थंडिल भूमि-शौच जाने का स्थान -139.शय्यातर-साधु को मकान की आज्ञा देने वाला 140. शस्त्र परिणत-जो पदार्थ शस्त्र के प्रयोग से अचित्त हो गया है 141. षट् जीवनिकाय-पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय जीव 142. श्रमण-कषायों को उपशान्त करने वाला तथा समभाव की साधना करने वाला साधु 143. श्रमणोपासक-श्रमण की उपासना करने वाला 144. श्रुतज्ञान-द्वादशांगी का ज्ञान, सम्यग्दर्शन और 145. श्रोत्रेन्द्रिय-कान 146. हरित काय-हरियाली, वनस्पति

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