Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध स्त्रियों की। मणोहराई २-मनोहर तथा मनोरम। इंदियाइं-इन्द्रियों को। आलोइत्तए-काम दृष्टि से अवलोकन तथा। निज्झाइत्तए-ध्यान या स्मरण करने वाला। नो सिया-न हो। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं। णं-वाक्यालंकार में है। निग्गंथे-जो निर्ग्रन्थ। इत्थीणं-स्त्रियों की।मणोहराई २-मनोहर तथा मनोरम।इंदियाइंइन्द्रियों को।आलोएमाणे-देखता हुआ।निझाएमाणे-आसक्ति पूर्वक देखता हुआ विचरता है वह।संतिभेयाशांति रूप चारित्र का भेदन करता है और। संतिविभंगा-शांति रूप ब्रह्मचर्य का भंग करता हुआ। जाव-यावत्। धम्माओ-केवलि प्रज्ञप्त धर्म से भी। भंसिज्जा-भ्रष्ट हो जाता है अतः। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ-साधु। इत्थीणं-स्त्रियों की।मणोहराई २-मनोहर तथा मनोरम-मन को लुभाने वाली । इंदियाइं-इन्द्रियों को।आलोइत्तए-अवलोकन करने। निज्झाइत्तए-विशेष रूप से देखने या ध्यान करने की वृत्ति वाला। नो सिया-न बने। त्ति-इस प्रकार। दुच्चा भावणा-यह दूसरी भावना कही गई है।
____ अहावरा-अथ द्वितीय भावना से आगे अब। तच्चा भावणा-तीसरी भावना को कहते हैं। निग्गंथेनिर्ग्रन्थ-साधु। इत्थीणं-स्त्रियों की। पुव्वरयाई-पूर्व रति को।पुव्वकीलियाई-तथा पूर्व क्रीडा को।सुमरित्तएस्मरण करने वाला। नो सिया-न हो, क्योंकि। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं। णं-प्राग्वत्। निग्गंथेनिर्ग्रन्थ। इत्थीणं-स्त्रियों की। पुव्वरयाई-पूर्व रति का। पुव्वकीलियाई-पूर्व क्रीडा का।सरमाणे-स्मरण करता हुआ। संतिभेया-शांति का भेदक। जाव-यावत्। भंसिजा-केवली भाषित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है अतः। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ-साधु।इत्थीणं-स्त्रियों की। पुव्वरयाई-पूर्व रति और। पुव्वकीलियाई-पूर्व क्रीड़ा का।सरित्तएस्मरण करने वाला। नो सियत्ति-न बने इस प्रकार यह। तच्चा भावणा-चतुर्थ महाव्रत की तीसरी भावना कही गई है।
अहावरा-अथ अपर। चउत्था भावणा-चौथी भावना को कहते हैं। नाइमत्तपाणभोयणभोई-जो साधु मात्रा-प्रमाण से अधिक आहार-पानी नहीं करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। न पणीयरसभोयणभोईजो प्रणीत रस-प्रकाम भोजन का उपभोग करने वाला नहीं है, अर्थात् सरस आहार नहीं करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है-साधु है। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं, कि यह कर्म बन्धन का हेतु है। अइमत्तपाणभोयणभोई-प्रमाण से अधिक आहार-पानी करने वाला।से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ-साधु।पणीयरसभोयणभोईप्रणीत रस युक्त भोजन करने वाला।संतिभेया-शान्ति रूप ब्रह्मचर्य व्रत का विघातक। जाव-यावत्।भंसिजाधर्म से भ्रष्ट हो जाता है अतः। नाइमत्तपाणभोयणभोई-जो प्रमाण से अधिक आहार-पानी करने वाला नहीं है। से-वह। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ है। नो पणीयरसभोयणभोई-जो प्रणीत रस युक्त भोजन को भोगने वाला भी नहीं है। से-वह। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ है। त्ति-इस प्रकार। चउत्था भावणा-यह चौथी भावना का स्वरूप कहा गया है।
__अहावरा पंचमा भावणा-अब पांचवीं भावना को कहते हैं। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ साधु। इत्थी-स्त्री। पसु-पशु। पण्डग-पंडक-नपुंसक आदि से। संसत्ताइं-संसक्त-संयुक्त। सयणासणाई-शय्या आसनादि के। सेवित्तए-सेवन करने वाला।न सिया-न हो।केवली-केवली भगवान कहते हैं कि।इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताइंस्त्री, पशु और नपुंसक आदि से युक्त। सयणासणाइं-शय्या-उपाश्रय आसनादि का। सेवेमाणे-सेवन करने वाला। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ। संतिभेया-शान्ति का भेदक अर्थात् ब्रह्मचर्य का भंग करने वाला। जाव-यावत् धर्म से।