Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 520
________________ पञ्चदश अध्ययन ४८५ प्रमाण पूर्वक ग्रहण करने पर। एतावताव-इस प्रकार। उग्गहणसीलएत्ति-अवग्रहण शील होता है इस प्रकार यह। तच्चा भावणा-तीसरी भावना कथन की गई है। अहावरा चउत्था भावणा-अब चौथी भावना को कहते हैं। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ। उग्गहंसि-अवग्रह के।उग्गहियंसि-लेने पर।अभिक्खणं २-बारंबार। उग्गहणसीलए सिया-अवग्रहण शील से अर्थात् पदार्थों की बार-बार आज्ञा लेने के स्वभाव वाला हो क्योंकि केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं। निग्गंथेणंनिर्ग्रन्थ-साधु। उग्गहंसि-अवग्रह के।उग्गहियंसि-ग्रहण कर लेने पर।अभिक्खणं-बार-बार।अणुग्गहणसीलेआज्ञा न लेने वाला। अदिन्नं गिहिजा-अदत्त का ग्रहण करता है अतः। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ। उग्गहंसि-अवग्रह की। उपगड़ियंसि-याचना करे किन्त। अभिक्खणं २-बार-बार। उग्गहणसीलएत्ति-अवग्रह के ग्रहण करने वाला हो इस प्रकार। चउत्था भावणा-यह चौथी भावना कही गई है। अहावरा पंचमा भावणा-अब पांचवीं भावना को कहते हैं। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ। साहम्मिएसुसाधर्मियों से। अणुवीइ-विचार कर। मिउग्गहजाई-मितावग्रह की याचना करे। नो अणुवीइ-न कि बिना विचारे।मिउग्गह-मित्त-प्रमाण पूर्वक अवग्रह की। जाई-याचना करे। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं। अणणुवीइ-बिना विचार। मिउग्गहजाई-मितावग्रह की याचना करने वाला। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ। साहम्मिएसु-साधर्मिकों में। अदिन्नं-अदत्त का। उग्गिण्हिज्जा-ग्रहण करता है अतः।अणुवीइमिउग्गहजाईविचार कर मितावग्रह की जो याचना करता है। से निग्गन्थे-वह निर्ग्रन्थ है। साहम्मिएसु-साधर्मिकों में। नो अणणुवीइ-विचार न करके। मिउग्गहजाई-मितावग्रह की याचना करने वाला निर्ग्रन्थ नहीं होता। इइ-इस प्रकार यह। पंचमा भावणा-पांचवीं भावना कही गई है। मूलार्थ-इस तीसरे महाव्रत की ये पांच भावनाएं हैं उन पांच भावनाओं में से प्रथम भावना यह है- जो विचार कर मर्यादा पूर्वक अवग्रह की याचना करने वाला है, वह निर्ग्रन्थ है, न कि बिना विचार किए मितावग्रह की याचना करने वाला। केवली भगवान कहते हैं कि बिना विचार किए अवग्रह की याचना करने वाला निर्ग्रन्थ अदत्त को ग्रहण करता है। इसलिए निर्ग्रन्थ को विचार पूर्वक ही अवग्रह की याचना करनी चाहिए। - अब दूसरी भावना को कहते हैं- गुरुजनों की आज्ञा लेकर आहार-पानी करने वाला निर्ग्रन्थ होता है, न कि बिना आज्ञा के आहार-पानी करने वाला। केवली भगवान् कहते हैं कि जो निर्ग्रन्थ गुरु आदि की आज्ञा प्राप्त किए बिना आहार-पानी आदि करता है वह अदत्तादान का भोगने वाला होता है। इसलिए आज्ञा पूर्वक, आहार-पानी करने वाला ही निर्ग्रन्थ होता है। ____ अब तृतीया भावना का स्वरुप कहते हैं- निर्ग्रन्थ-साधु क्षेत्र और काल के प्रमाण पूर्वक अवग्रह की याचना करने वाला होता है। केवली भगवान कहते हैं कि जो साधु मर्यादा पूर्वक अवग्रह की याचना करने वाला नहीं होता वह अदत्तादान को सेवन करने वाला होता है, अत: प्रमाण पूर्वक अवग्रह का ग्रहण करना यह तीसरी भावना है। अब चौथी भावना को कहते हैं- निर्ग्रन्थ अवग्रह के ग्रहण करने वाला हो। केवली भगवान कहते हैं कि निर्ग्रन्थ बार-बार अवग्रह के ग्रहण करने वाला हो यदि वह ऐसा न होगा तो

Loading...

Page Navigation
1 ... 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562