Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 519
________________ ४८४ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध निर्ग्रन्थेन अवग्रहे अवगृहीते एतावता अवग्रहण-शीलक इति तृतीया भावना। ___ अथापरा चतुर्थी भावना-निर्ग्रथेन अवग्रहे अवगृहीते अभीक्षणं २ अवग्रहणशीलकः स्यात् केवली ब्रूयात् निर्ग्रन्थेन अवग्रहे तु अभीक्षणं २ अनवग्रहणशीलः अदत्तं गृण्हीयात्, निर्ग्रन्थः अवग्रहे अवगृहीते अभीक्षणं २ अवग्रहणशीलक इति चतुर्थी भावना। ___अथापरा पंचमी भावना-अनुविचिन्त्य मितावग्रहयाची स निर्ग्रन्थः साधर्मिकेषु नो अननुविचिन्त्य मितावग्रहयाची, केवली ब्रूयात् अननुविचिन्त्य मितावग्रहयाची सः निर्ग्रन्थः साधर्मिकेषु अदत्तम् अवगृहीयात्, अनुविचिन्त्य मितावग्रहयाची स निर्ग्रन्थः साधर्मिकेषु नो अननुविचिन्त्य मितावग्रहयाची ति पंचमी भावना। पदार्थ- तस्सिमाओ-इस तीसरे महाव्रत की ये। पंच-पांच। भावणाओ-भावनाएं। भवंति-हैं। तथिमा-उन पांच भावनाओं मे से यह। पढमा-प्रथम। भावणा-भावना है। अणुवीइ-जो विचार . . कर।मिउग्गह-मित-प्रमाण पुरस्सर अवग्रह की। जाई-याचना करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। नोअणणुवीइजो बिना विचारे। मिउग्गह-मितावग्रह की। जाई-याचना करने वाला नहीं होता। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं।अणणुवीइ-बिना विचारे। मिउग्गह-मित अवग्रह की।जाई-याचना करने वाला।निग्गंथे-निर्ग्रन्थ।अदिनं-अदत्तादान का।गिण्हेजा ग्रहण करता है, अतः जो।अणुवीइ-विचार कर।मिउग्गहजाई-मित अवग्रह की याचना करता है।से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ होता है। नो अणणुवीइमिउग्गहजाईन कि बिना विचारे मितावग्रह की याचना करने वाला भी। त्ति-इस प्रकार। पढमा भावणा-यह प्रथम भावना कही गई है। अहावरा दुच्चा भावणा-अथ अपर द्वितीय भावना को कहते हैं। अणुनविय-गुरु आदि की आज्ञा ले कर। पाणभोयणभोई-जो आहार-पानी करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। नो अणणुनवियपाणभोयणभोई-न कि गुरुजनों की आज्ञा के बिना आहार-पानी करने वाला। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं। अणणुन्नविय-गुरुजनों की आज्ञा प्राप्त किए बिना जो। पाणभोयणभोई-आहार-पानी करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ।अदिन्नं-अदत्तादान का। जिज्जा-भोगने वाला होता है। तम्हा-इस लिए। अणुन्नवियगुरुजनों की आज्ञा ले कर जो। पाणभोयणभोई-आहार-पानी करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। नो अणणुनवियपाणभोयणभोई-न कि बिना आज्ञा के आहार-पानी करने वाला।त्ति-इस प्रकार। दुच्चा भावणायह दूसरी भावना कही गई है। ___ अहावरा तच्चा भावणा-अब तीसरी भावना को कहते हैं। निग्गंथेणं-साधु। उग्गहंसि-अवग्रह मांगने पर। उग्गहियंसि-प्रमाण पूर्वक क्षेत्र और काल प्रमाण अवग्रहण को। एतावताव-इस प्रकार।उग्गहणसीलए सिया-प्रमाण पूर्वक अवग्रह के ग्रहण करने के स्वभाव वाला हो। केवली बूया०-केवली भगवान कहते हैं। निग्गंथेणं-निर्ग्रन्थ। उग्गहंसि-अवग्रह के। अणुग्गहियंसि-प्रमाण पूर्वक ग्रहण न करने से। एतावता-इस प्रकार। अणुग्गहणसीले-आज्ञा न लेने के स्वभाव वाला होने से। अदिनं-अदत्त का। ओगिहिन्ना-ग्रहण करता है अर्थात् अदत्तादान का सेवन करने वाला होता है। निग्गंथेणं-निर्ग्रन्थ-साधु। उग्गह-अवग्रह के।उग्गहियंसि

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