Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 463
________________ ४२८ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध __पदार्थ- तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। तिसलाए खत्तियाणीएत्रिशला क्षत्रियाणी ने। अह-अथ। अन्नया कयाई-अन्य किसी समय। नवण्हं मासाणं-नव मास । बहुपडिपुण्णाणं-परिपूर्ण होने पर। अद्धट्ठमाणराइंदियाणं साढ़े सात अहोरात्र अधिक। विइक्कंताणंव्यतीत होने पर। जे-जो। से-वह। गिम्हाणं-ग्रीष्म ऋतु के। पढमे मासे-प्रथम मास। दुच्चे पक्खे-दूसरे पक्ष। चित्तसुद्धे-चैत्र शुक्ल पक्ष में।णं-वाक्यालंकार में है। तस्स-उस।चित्तसुद्धस्स-चैत्र शुक्ल की।तेरसीपक्खेणंत्रयोदशी तिथि के दिन। हत्थु०-उत्तरा फाल्गुनी। णक्खत्तेणं-नक्षत्र के साथ। जोगमुवागएणं-चन्द्रमा का योग आ जाने पर। समणं-श्रमण। भगवं-भगवान। महावीरं-महावीर को।आरोग्गा आरोग्गं पसूया-रोग रहित अर्थात् सुख-पूर्वक माता ने प्रसव किया अर्थात् भगवान को सुख पूर्वक जन्म दिया। मूलार्थ-उस काल और उस समय में त्रिशला क्षत्राणी ने अन्य किसी समय नव मास साढ़े सात अहोरात्र के व्यतीत होने पर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के द्वितीय पक्ष में अर्थात् चैत्र . . शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर श्रमण भगवान महावीर को सुखपूर्वक जन्म दिया। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास और द्वितीय पक्ष अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में त्रिशला महाराणी ने बिना किसी प्रकार की पीड़ा के, सुखपूर्वक बाधा-पीड़ा से रहित पुत्र को जन्म दिया। भगवान के जन्म के समय माता एवं पुत्र को कोई कष्ट नहीं हुआ। दोनों स्वस्थ, नीरोग एवं प्रसन्न थे। भगवान के जन्म से देव-देवियों के मन में होने वाले हर्ष का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्- जण्णं राइं तिसला ख० समणं. महावीरं अरोया अरोयं पसूया तण्णं राइं भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिदेवेहिं देवीहि यओवयंतेहिं उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुजोए देवसन्निवाए देवकहक्कहए उप्पिंजलभूए यावि होत्था। छाया- यस्यां रात्रौ त्रिशला क्षत्रियाणी श्रमणं भगवन्तं महावीरं अरोग्या अरोग्यं प्रसूता (सुषुवे) तस्यां रात्रौ भवनपतिवाणव्यन्तरज्योतिषिकविमानवासिदेवैः देवीभिश्च अवपतद्भिः उत्पतद्भिश्च एको महान् दिव्यः देवोद्योतः देवसन्निपातः देवकहकहकः उत्पिंजलभूतश्चापि अभवत्। __ पदार्थ- जण्णं राइं-जिस रात्रि में। तिसला खत्तियाणी-त्रिशला क्षत्रियाणी ने। समणं-श्रमण। भगवं-भगवान। महावीरं-महावीर को। अरोया अरोयं-सुखपूर्वक। पसूया-जन्म दिया। तण्णं राइं-उस रात्रि में।भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिदेवेहि-भवन पति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों तथा। देवीहि य-देवियों के।ओवयंतेहिं-स्वर्ग से भूमि पर आने।य-और। उप्पयंतेहिं-मेरु पर्वत पर जाने से भूमि पर।

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