Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन
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अब उनके माता-पिता के सम्बन्ध में कुछ बातों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार लिखते हैंमूलम् - समणस्स णं ३ अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि हुत्था, ते णं बहूइं वासाई समणोवासगपरियागं पालइत्ता छण्हं जीवनिकायाणं सारक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरिहित्ता पडिक्कमित्ता अहारिहं उत्तरगुणपायच्छित्ताइं पडिवज्जित्ता कुससंथारगं दुरूहित्ता भत्तं पच्चक्खायंति २ अपच्छिमाए मारणंतियाए संलेहणाए ज्झसियसरीरा कालमासे कालंकिच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ना, तओ णं आउक्खएणं भव ठि० चुए चइत्ता महाविदेहे वासे चरमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥१७८॥
छाया - श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अम्बापितरौ पार्श्वापत्ये श्रमणोपासकौ चापि अभूताम् । तौ बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयित्वा षण्णां जीवनिकायानां संरक्षणनिमित्तम् आलोच्य निन्दित्वा गर्हित्वा प्रतिक्रम्य यथार्हं उत्तरगुणप्रायश्चितानि प्रतिपद्य कुशसंस्तारकं दुरूह्य भक्तं प्रत्याख्यातः २ अपश्चिमया मारणान्तिकया संलेखनया ज्झोषितशरीरौ कालमासे कालं कृत्वा तच्छरीरं विप्रजह्य अच्युते कल्पे देवतया उपपन्नौ, ततः आयुः क्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षण, च्युतौ त्यक्त्वा महाविदेहवर्षे चरमेण उच्छ्वासेन सेत्स्यतः भोत्स्यतः मोक्ष्यतः परिनिर्वास्यतः सर्वदुखानामन्तं करिष्यतः ।
पदार्थ- समणस्स भगवओ महावीरस्स-श्रमण भगवान महावीर के। अम्मापियरो-माता-पिता । पासावच्चिज्जा- भगवान पार्श्वनाथ के साधुओं के। समणोवासगा यावि हुत्था - श्रमणोपासक थे । च पुनरर्थक है। अवि- समुच्चयार्थक है । णं-वाक्यालंकार में है। ते वे दोनों। बहूइं बहुत । वासाई - वर्षों की । समणोवासगपरियागं- श्रमणोपासक की पर्याय को श्रावक धर्म को । पालइत्ता - पालकर । छण्हं जीवनिकायाणं-छः प्रकार की जीवनिकाय - समूह की । सारक्खणनिमित्तं रक्षा के निमित्त । आलोइत्ता - आलोचना कर के । निंदित्ताआत्मा की साक्षी से निन्दा करके । गरिहित्ता- गुरु आदि को साक्षी से गर्हणा कर के । पडिक्कमित्ता- पाप कर्म से प्रतिक्रमण करके । अहारिहं- यथा योग्य । उत्तरगुणपायच्छित्ताई- उत्तर गुण सम्बन्धि प्रायश्चित को। पडिवज्जित्ताग्रहण करके । कुससंथारगं-कुशा के संस्तारक पर। दुरूहित्ता-बैठकर । भत्तं पच्चक्खायंति-भक्त प्रत्याख्यान स्वीकार करते हैं। भक्त प्रत्याख्यान के पश्चात् । अपच्छिमाए - अन्तिम । मारणंतियाए- मारणान्तिक । संलेहणाएशरीर की संलेखना से । ज्झसियसरीरा शरीर को सुखा कर । कालमासे- काल के समय । कालं किच्चा - काल करके। तं सरीरं-उस शरीर को । विप्पजहित्ता त्याग कर । अच्चुए कप्पे-अच्युत नामा बारहवें देवलोक में। देवत्ताए-देवपने। उववन्ना-उत्पन्न हुए। णं-वाक्यालंकार में है। तओ-तदनन्तर । आउक्खएणं-देवलोक की आयु का क्षय करके । भव-देव भव का क्षय करके । ठि०-देव स्थिति का क्षय करके । चुया - वहां से च्यवे और।