Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 483
________________ ४४८ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध नानालताभक्तिचित्रां विरचितां शुभां चारुकान्तरूपां, नानामणिपञ्चवर्णघंटापताकाप्रतिमंडिताग्रशिखरां प्रासादीयां दर्शनीयां सुरूपाम्। पदार्थ-णं-वाक्यालंकार में है। तओ-तदनन्तर। सक्के-शक। देविंदे-देवेन्द्र।देवराया-देवराज । सणियं २-शनैः-शनैः-धीरे-धीरे।जाणविमाणं-विमान। पट्ठवेति-स्थापित करता है फिर। सणियं २-धीरे- . धीरे। जाणविमाणं-विमान को।पट्ठवेत्ता-चार अंगुल प्रमाण भूमि से ऊंचा स्थापित करके फिर। सणियं २-. शनैः २। जाणविमाणाओ-विमान से। पच्चोरुहति-नीचे उतरता है और वहां उतर कर। सणियं २-शनैः २। एगंतमवक्कमइ-एकान्त में अपक्रमण करता है। एगंतमवक्कमित्ता-एकान्त में अपक्रमण करके। महया-महान्। वेउव्विएणं-वैक्रिय। समुग्घाएणं-समुद्घात को।समोहणइ-फोड़ता है अर्थात् वैक्रिय समुद्घात करता है और वैक्रिय समुद्घात करके। एगं-एक। महं-महान-बड़ा। नानामणिकणगरयणभत्तिचित्तं-नाना प्रकार के मणि, कनक, रत्नादि से चित्रित दीवार वाले। सुभं-शुभ। चारु-मनोहर। कंतरूवं-कान्त रूप वाले। देवच्छंदयंदेवच्छन्दक को। विउव्वइ-बनाता है। तस्स णं-उस। देवच्छंदयस्स-देवच्छंदक के-चौंतरे के। बहुमज्झदेसभाए-मध्य देश भाग में अर्थात् मध्य में। एगं महं-एक बड़ा भारी। सपायपीढं-पाद पीठ से युक्त। नानामणिकणगरयणभत्तिचित्तं-नाना विध मणि, स्वर्ण, रत्नादि से चित्रित भित्ति वाले। सुभं-शुभ। चारुकंतरूवं-मनोहर कान्त स्वरूप। सिंहासणं विउव्वइ-सिंहासन को बनाता है उसे बनाकर। जेणेव-जहां पर।समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर हैं । तेणेव-वहां पर। उवागच्छइ-आता है और वहां आकर। समणं भगवं महावीर-श्रमण भगवान महावीर को।तिक्खुत्तो-तीन बार।आयाहिणं-आदक्षिणा।पयाहिणंप्रदक्षिणा। करेइ-करता है और प्रदक्षिणा करके। समणं भगवं महावीर-श्रमण भगवान महावीर को। वंदइवन्दना करता है। णमंसइ-नमस्कार करता है फिर वन्दना नमस्कार करके। समणं भगवं महावीरं-श्रमण भगवान महावीर को।गहाय-लेकर। जेणेव-जहां पर।देवच्छंदए-देवच्छंदक है। तेणेव-वहां पर।उवागच्छइआता है और वहां आकर।सणियं २-शनैः २। पुरस्थाभिमुहं-पूर्वाभिमुख-पूर्व दिशा को मुख करवा कर भगवान को। सीहासणे-सिंहासन पर। निसीयावेइ-बैठाता है फिर। सणियं-सणियं-शनैः २। निसीयावित्ता-उन्हें वहां बैठा कर।सयपागसहस्सपागेहि-शत और सहस्र औषधियों के योग से बने हुए शतपाक, सहस्रपाक नाम से प्रसिद्ध। तिल्लेहि-तैलों की। अब्भंगेइ-मालिश करता है और मालिश करके। गंधकासाइएहि-सुगन्धि युक्त द्रव्यों से। उल्लोलेइ-उद्वर्तन करता है और उद्वर्तन करने के पश्चात्।सुद्धोदएणं-शुद्ध-निर्मल जल से।मजावेइ २-स्नान कराता है उन्हें स्नान कराकर फिर सुगन्ध युक्त वस्त्र से शरीर को पोंछता है और शरीर पोंछ कर। जस्स मुल्लं-जिसका मूल्य।णं-वाक्यालंकार में है। सयसहस्सेणं साहिएणं-एक लाख सुवर्ण मुद्रा से भी अधिक है। तिपडोलतित्तिएणं-इस प्रकार बहुमूल्य रूप।सीतेण-अत्यन्त शीतल। गोसीसरत्तचंदणेणं-गोशीर्ष रक्त चन्दन से। अणुलिंपइ-लेपन करता है गोशीर्ष चन्दन का लेपन करके। ईसिं-थोड़ा। निस्सासवायवोझं-नाक की हवा से उड़ने वाले। वरनयरपट्टणुग्गयं-विशिष्ट शहर में निर्मित एवं। कुसलनरपसंसियं-कुशल पुरुषों द्वारा प्रशंसित। अस्सलालापेलवं-अश्व की लाला के समान श्वेत और मनोहर। छेयारियकणगखइयंतकम्मविद्वान शिल्पाचार्य द्वारा जिस वस्त्र के किनारे सुवर्ण की तारों से खचित हैं। हंसलक्खणं-हंस के समान श्वेत वर्ण

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