Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन
४४९ वाला ऐसा। पट्टजुयलं-वस्त्र युगल को। नियंसावेइ-पहनाता है उसे पहना कर। हारं अद्धहारं-हार-अठारह लड़ी का, अद्धहार-नौं लड़ी का। उरत्थं-वक्षस्थल में। नेवत्थं-सुन्दर वेष।एगावलिं-एकावली हार।पालंबसुत्तंप्रालम्बसूत्र अर्थात् लटके हुए झुमके।पट्टमउडरयणमालाओ-कटि सूत्र, मुकुट, रत्न मालाएं आदि।आविंधावेइपहनाता है। अविंधाविंत्ता-उन्हें पहना कर फिर। गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमेणं-ग्रन्थित, वेष्टित, पूरिम और संघातिम इन चार प्रकार के पुष्पों की। मल्लेणं-मालाओं से विभूषित। कप्परुक्खमिव-कल्पवृक्ष की भांति। अलंकरेइ २ त्ता-भगवान को अलंकृत करता है उन्हें अलंकृत करने के अनन्तर। दुच्चंपि-द्वितीय बार। महयाबहुत विस्तृत। वेउब्विय समुग्धाएणं-वैक्रिय समुद्घात।समोहणइ-करता है वह वैक्रिय समुद्घात करके।एगं महं-एक बड़ी। चंदप्पहं-चन्द्रप्रभा नाम की। सिवियं-शिविका। सहस्सवाहणियं-सहस्र वाहनिका अर्थात् हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली पालकी को।विउव्वति-वैक्रिय समुद्घात से बनाता है जो कि विविध भांति के चित्रों से चित्रित की गई है। तं-जैसे कि। ईहा-बृक विशेष। मिग-हिरण। उसभ-वृषभ-बैल। तुरग-अश्वघोड़ा। नर-मनुष्य। मगर-मगर मच्छ। विहग-पक्षी। वानर-बन्दर। कुंजर-हाथी। रुरु-मृग विशेष। सरभशरभ-अष्टापद जीव विशेष और। चमर-चमरी गाय। सहूल-शार्दूल। सीह-सिंह-शेर। वणलय-वनलता। भत्तिचित्तलयं-भक्ति चित्र लता-नाना प्रकार की वन लताओं से चित्रित, अर्थात् इन चित्रों से वह शिविका चित्रित हो रही है, इसी प्रकार। विजाहर-विद्याधर तथा। मिहुणजुयल-मिथुन युगल अर्थात् स्त्री-पुरुष का जोड़ा। जंत-यंत्र विशेष का चित्र। जोगजुत्तं-योगयुक्त अर्थात् युगलों से युक्त। अच्चीसहस्समालिणीयंसहस्र सूर्य की किरणों से युक्त।सुनिरूवियं-भली प्रकार से निरूपण किया है। मिसिमिसिंतरूवगसहस्सकलियंप्रदीप्त सहस्त्ररूपों से युक्त जो। ईसिं-थोड़ा। भिसमाणं-देदीप्यमान। भिब्भिसमाणं-और अत्यन्त देदीप्यमान। चक्खुल्लोयणलेसं-चक्षुओं द्वारा जिसका तेज देखा नहीं जा सकता इस प्रकार की वह शिविका तथा। मुत्ताहलमुत्ताजालंतरोवियं-मुक्ताफल-मोती और मुक्ताजाल-मोतियों के जालों से युक्त तथा। तवणीयपवरलंबूसपलंबंतमुत्तदाम-सुवर्णमय पाखंड युक्त चारों ओर लटकती हुई मोतियों की माला जिसमें दीख रही है और। हारद्धहारभूसणसमोणयं-हार, अर्द्धहार आदि भूषणों से विभूषित। अहियपिच्छणिजंअधिक प्रेक्षणीय उसमें देखने योग्य।पउमलयभत्तिचित्तं-पद्मलता की भांति चित्रित।असोगवणभत्तिचित्तंअशोक वन की भांति चित्रित। कुंदलयभत्तिचित्तं-कुंदलता की भांति चित्रित। नाणालयभत्तिचित्तं-नाना प्रकार की पुष्पलताओं की भांति चित्रित। विरइयं-विरचित। सुभं-शुभ। चारुकंतरूवं-मनोहर कान्त रूप, तथा। नाणामणिपंचवन्नघंटापडायपडिमंडियग्गसिहरं-नाना प्रकार की पांच वर्ण वाली मणियों, घण्टा तथा पताकाओं से जिसका शिखर भाग मंडित हो रहा है, अर्थात् पांच वर्ण की मणियों, घण्टियों और ध्वजा तथा पताकाओं से जिसका शिखर भाग सुशोभित हो रहा है इस प्रकार की। पासाइयं-प्रासादीय। दरिसणिजंदर्शनीय सुरूवं-वह शिविका सुन्दर एवं सुरूप वाली है।
मूलार्थ-तत् पश्चात् शक्र देवों का इन्द्र देवराज शनैः २ अपने विमान को स्थापित करता है, फिर शनैः २ विमान से नीचे उतरता है और एकान्त में जाकर वैक्रिय समुद्घात करता है। उससे नाना प्रकार की मणियों तथा कनक, रत्नादि से जटित एक बहुत बड़े कान्त मनोहर रूप