Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
गया है । और समवायांग सूत्र में उत्तम पुरुषों का वर्णन प्रारम्भ करते हुए कल्प सूत्र का उल्लेख किया गया है, इससे कल्पसूत्र की रचना का आधार आगम ही प्रतीत होते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि आगमों में अनेक स्थलों पर गर्भ संहारण का उल्लेख प्राप्त होने के कारण इस घटना को घटित होने में सन्देह को अवकाश नहीं रह जाता।
अब सूत्रकार आगे कहते हैं
मूलम् - समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए यावि होत्था साहरिज्जिस्सामित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ समणाउसो ।
छाया - श्रमणो भगवान् महावीरः त्रिज्ञानोपगतश्चापि अभवत् समाहरिष्ये इति जानाति, समाह्रियमाणोऽपि जानाति, समाहृतोऽस्मीति जानाति श्रमणायुष्मन् ।
पदार्थ- समणाउसो ! - आयुष्मन् श्रमण ! समणे - श्रमण। भगवं भगवान्। महावीरे महावीर । तिन्नाणोवगए यावि होत्था - तीन-मति श्रुत और अवधि ज्ञानों से युक्त थे | साहरिज्जिस्सामित्ति जाणइ-मैं इस स्थान से अन्य स्थान में संहृत किया जाऊंगा यह जानते थे। साहरिज्जमाणे वि जाणइ - वर्तमान में संहृत किए जाने को भी जानते हैं तथा । संहरिएमित्ति जाणइ - मैं संहृत हो चुका हूं, एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थापित किया जा चुका हूँ । अर्थात् देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी से त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षी में प्रतिष्ठित किया जा चुका हूं यह भी जानते थे ।
मूलार्थ —हे आयुष्मन् श्रमणो ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी गर्भावास में तीन ज्ञान, मति श्रुत अवधि से युक्त थे। मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊंगा, तथा मेरा संहरण हो रहा है। और मैं संहृत किया जा चुका हूं। यह सब जानते थे ।
हिन्दी विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान महावीर गर्भावास में मति-श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों से युक्त थे । वे अपने अवधिज्ञान से यह जानते थे कि मेरे गर्भ का संहरण किया जाएगा और जिस समय देव उनके गर्भ का संहरण कर रहा था उस समय भी वे जानते थे कि मुझे स्थानान्तरित किया जा रहा है और त्रिशला की कुक्षि में रखने के बाद भी वे जानते थे कि मुझे देवानन्दा की कुक्षि से यहां लाया गया है। इस तरह वे अपने गर्भ संहरण के सम्बन्ध में हुई समस्त क्रियाओं को जानते
परिकिरवत्तिया धाराहतकलंबपुप्फगंपिव समुस्ससियरोमकूवा, समणं भगवं महावीरं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी २ चिट्ठइ ॥ १२ ॥ भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी, किं णं भंते! एसा देवानंदा माहणी आगयपण्हया तंचेव जाव रोमकूवा; देवाणुप्पिए अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी २ चिट्ठइ ? ॥१३॥ गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी, एवं खलु गोयमा ! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा, अहं णं देवानंदाए माहणी अत्तए, तणं सा देवाणंदा माहणी पुव्वपुत्तसिणेहाणुरागेण आगयपण्हया जाव समुस्ससियरोमकूषा ममं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी २ चिट्ठा । भगवती सूत्र, श०९, ३० ३३, सूत्र १४१ । १ तेणं कालेणं तेणं समएणं कप्पस्स समोसरणं णे यव्वं जाव गणहरा, सावच्या निरवच्चा वोच्छिण्णा ।
- समवायांग सूत्र ।
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