Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन वृद्धि होती रही है। अतः इसका नाम 'वर्द्धमान' रखते हैं
प्रस्तुत सूत्र में केवल गुण संपन्न नाम देने का उल्लेख किया गया है। परन्तु नाम करण की परम्परा का अनुयोगद्वार सूत्र में विस्तार से विवेचन किया गया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि नाम संस्कार की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है।
____ भगवान महावीर के माता-पिता भगवान पार्श्व नाथ के श्रावक थे। फिर भी उन्होंने अन्य मत के श्रमण भिक्षुओं आदि को बुलाकर दान दिया। इससे स्पष्ट होता है कि आगम में श्रावक के लिए अनुकम्पा दान आदि का निषेध नहीं किया गया है। गृहस्थ का द्वार बिना किसी भेद भाव के सब के लिए खुला रहता है। वह प्रत्येक प्राणी के प्रति दया एवं स्नेह भाव रखता है।
इसी विषय को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- तओणंसमणे भगवं महावीरे पंचधाइपरिवुडे तं० १ खीरधाईए, २ मजणधाईए, ३ मंडणधाईए, ४ खेलावणधाईए, ५ अंकधाईए, अंकाओ अंकं साहरिजमाणे रम्मे मणिकुट्टिमतले गिरिकंदरसमल्लीणेविव चंपयपायवे अहाणुपुवीए संवड्डइ, तओ णं समणे भगवं विन्नायपरिणय-(मित्ते) विणियत्तबालभावे अप्पुस्सुयाइं उरालाई माणुस्सगाई पंचलक्खणाइंकामभोगाई सद्दफरिसरसरूवगन्धाइं परियारेमाणे एवं च णं विहरइ॥१७६ ॥
छाया- ततः श्रमणो भगवान् महावीरः पंचधात्रीपरिवृत्तः तद्यथा १ क्षीरधात्र्या, २ मजनधात्र्या, ४ मंडनधात्र्या, ४ क्रीड़नधान्या, ५ अंकधान्या, अंकाद् अंकं समाह्रियमाणः रम्ये मणिकुट्टिमतले गिरिकन्दरसलीन इव चम्पकपादपः यथानुपूर्व्या संवर्धते। ततः श्रमणो भगवान् महावीरः विज्ञातपरिणतः विनिवृत्तबालभावः अल्पौत्सुक्यान् उदारान् मानुष्यकान् पञ्चलक्षणान् कामभोगान् शब्दस्पर्शरसरूपगंधान् परिचरन् एवं च विहरति।
. पदार्थ- णं-वाक्यालंकार में है। तओ-तदनन्तर। समणे-श्रमण। भगवं-भगवान। महावीरेमहावीर। पंचधाइपरिवुडे-पांच धाय माताओं से परिवृत्त हुए। तंजहा-जैसे कि। खीरधाईए-दूध पिलाने वाली धाय माता से। मजणधाईए-स्नान कराने वाली माता से। मंडणधाईए-वस्त्र और अलंकार पहनाने वाली माता से। खेलावणधाईए-क्रीड़ा कराने वाली माता से और। अंकधाईए-गोद में खेलाने वाली माता से, इस प्रकार। अंकाओ अंकं साहरिजमाणे-एक गोद से दूसरी गोद में संहृत होते हुए। रम्मे-रमणीय।मणिकुट्टिमतलेमणिजटित आंगन में इस तरह वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। गिरिकंदर- समल्लीणेविव-जैसे पर्वत की गुफा में उत्पन्न हुआ। चंपयपायवे-चम्पक नाम का प्रधान वृक्ष विघ्न बाधाओं से रहित हो कर वृद्धि को प्राप्त होता है उसी प्रकार श्रमण भगवान महावीर भी। अहाणुपुव्वीए-यथानुक्रम। संवड्ढइ-निर्विजतया वृद्धि को प्राप्त हो रहे हैं। णं-वाक्यालंकार में है। तओ-तदनन्तर। समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर। विनायपरिणयःस्वयमेव विज्ञान को प्राप्त हुए। विणियत्तबालभावे-बाल भाव को त्याग कर यौवन में पदार्पण करते हुए।