Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन
४२९ एगे-एक। महं-महान। दिव्वे-प्रधान। देवुजोए-देव विमानों का उद्योत प्रकाश हुआ और। देवसन्निवाए-देवों के एकत्र होने से। देवकहक्कहए-देवों द्वारा अवर्णनीय कोलाहल करने से। उप्पिंजलभूए यावि होत्था-वह रात्रि देवों के अट्टहास एवं उद्योत से युक्त हो गई।
मूलार्थ-जिस रात्रि में रोग रहित त्रिशला क्षत्रियाणी ने रोग्रहित श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों और देवियों के स्वर्ग से आने और मेरूपर्वत पर जाने से एक महान तथा प्रधान देवोद्योत और देव सन्निपात के कारण महान कोलाहल और मध्य एवं उर्ध्व लोक में उद्योत हो रहा था।
. हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान के जन्म से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक चारों जाति के देवों के मन में हर्ष एवं उल्लास छा गया और वे प्रसन्नता पूर्वक भगवान का जन्मोत्सव मनाने को आने लगे। उन देव-देवियों के रत्न-जटित विमानों की ज्योति एवं मधुर ध्वनि से वह रात्रि ज्योतिर्मय हो गई और चारों ओर मधुर ध्वनि सुनाई देने लगी।
देवों ने वहां आकर क्या किया इसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- जण्णं रयणिं तिसला ख० समणं पसूया तण्णं रयणिं बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च १ गंधवासं च २ चुन्नवासं च ३ पुष्फवा० ४ हिरन्नवासं च ५ रयणवासं च ६ वासिंसु।
छाया- यस्यां रजन्यां त्रिशला क्षत्रियाणी श्रमणं भगवन्तं महावीरं प्रसूता (प्रसूतवती) तस्यां रजन्यां बहवो देवाश्च देव्यश्च एकं महद् अमृतवर्षं च, गन्धवर्षं च, चूर्णवर्षं च, पुष्पवर्ष च, हिरण्या वर्षं च, रलवर्षं च अवर्षयन्।
पदार्थ-जण्णं रयणिं-जिस रात्रि में। तिसला ख-त्रिशला क्षत्राणी ने। समणं भगवं महावीरंश्रमण भगवान महावीर को। पसूया-जन्म दिया। तण्णं रयणिं-उसी रात्रि में। बहवे-बहुत से। देवा-देव। य
और। देवीओ-देवियों ने। एगं महं-एक बड़ी भारी। अमयवासं च-अमृत वृष्टि की और। गंधवासं चसुगन्धित द्रव्यों की। चुन्नवासं च-सुगन्धि मय चूर्ण की। पुष्फवासं च-पुष्पों की। हिरन्नवासं च-तथा हिरण्य सोने-चांदी की और। रयणवासं च-रत्नों की। वासिंसु-वर्षा बरसाई।
मूलार्थ-जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया, उसी रात्रि में बहुत से देव और देवियों ने अमृत, सुगन्धित पदार्थ, चूर्ण, पुष्प, चान्दी, स्वर्ण और रत्नों की बहुत भारी वर्षा की।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान महावीर के जन्म पर हर्षविभोर होकर देवों ने अमृत, सुवासित पदार्थ, पुष्प, चांदी, स्वर्ण एवं रत्नों आदि की वर्षा की। उन्होंने उस क्षेत्र को सुवासित एवं रत्नमय बना दिया। महान् आत्माओं के प्रबल पुण्य से यह सब संभव हो सकता है।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं