Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पञ्चदश अध्ययन
४२३ से जिसे-महाविजय, सिद्धार्थ वर पुण्डरीक, दिक्स्वास्तिक और वर्द्धमान भी कहते हैं, अपने आयुष्य को पूरा करके भारतवर्ष के दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर में ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न हुए।
कुछ हस्तलिखित प्रतियों में 'सीहब्भवभूएणं' के स्थान में 'सीहइव भूतेणं' उपलब्ध होता है और यह पाठ असंदिग्ध प्रतीत होता है। ____ इसी विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए याविहुत्था, चइस्सामित्ति जाणइ, चुएमित्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, सुहुमेणं से काले पन्नत्ते।
छाया- श्रमणो भगवान् महावीरः त्रिज्ञानोपगतश्चापि अभवत् च्योष्ये इति जानाति, च्युतोस्मीति जानाति, च्यवमानो न जानाति सूक्ष्मः स कालः प्रज्ञप्तः।
पदार्थ-समणे-श्रमण।भगवं-भगवान्।महावीरे-महावीर स्वामी।तिन्नाणोवगए याविहोत्थातीन ज्ञानों से युक्त थे अतः। चइस्सामित्ति जाणइ-वे ऐसा जानते थे कि मैं यहां से च्यव कर मनुष्य लोक में जाऊंगा तथा।चुएमित्ति जाणइ-वे यह भी जानते थे कि मैं स्वर्ग से च्यव कर गर्भ में आया हूं परन्तु। चयमाणे न जाणइवे यह नहीं जानते थे कि मैं च्यव रहा हूँ क्योंकि।सुहमेणं से काले पन्नत्ते-यह काल अर्थात् च्यवन काल अत्यन्त सूक्ष्म कहा गया है। - मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर तीन ज्ञान (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधि ज्ञान) से युक्त थे, वे यह जानते थे कि मैं स्वर्ग से च्यवकर मनुष्य लोक में जाऊंगा, मैं वहां से च्यव कर अब गर्भ में आ गया हूं। परन्तु वे च्यवन समय को नहीं जानते थे। क्योंकि वह समय अत्यन्त सूक्ष्म होता
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान महावीर गर्भ में आए उस समय तीन ज्ञान से युक्त थे- १ मतिज्ञान, २ श्रुतज्ञान और ३ अवधि ज्ञान । मति और श्रुत ज्ञान मन और इन्द्रियों की सहायता से पदार्थों का ज्ञान कराता है। परन्तु, अवधि ज्ञान में मन और इन्द्रियों के बिना सहयोग के ही आत्मा मर्यादित क्षेत्र में स्थित रूपी पदार्थों को जान और देख सकता है। भगवान महावीर को भी स्वर्ग में एवं जिस समय गर्भ में आए तब से लेकर गृहस्थ अवस्था में रहे तब तक तीन ज्ञान थे। वे स्वर्ग के आयुष्य को पूरा करके मनुष्य लोक में आने के समय को जानते थे और गर्भ में आने के बाद भी वे इस बात को जानते थे कि मैं स्वर्ग से यहां आ गया हूँ। परन्तु जिस समय वे स्वर्ग से च्युत हो रहे थे उस समय को नहीं जान रहे थे। क्योंकि यह काल बहुत ही सूक्ष्म होता है, ऋजु गति में एक समय लगता है और वक्रगति में आत्मा जघन्य दो और उत्कृष्ट ४ समय में अपने स्थान पर पहुँच जाता है। और इतने सूक्ष्म समय में छद्मस्थ के ज्ञान का उपयोग नहीं लगता। अतः च्यवन के समय वे अपने ज्ञान का उपयोग नहीं लगा सकते थे। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान गर्भ काल में तीन ज्ञान से युक्त थे।