Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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- श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥
से भिक्खू वा. गामा० दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बी हरि उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्थे• सइ परक्कमे जाव नो उज्जुयंगच्छिज्जा, तओ संजया० गामा० दूइजिजा॥११४॥
छाया- स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् पुरतः युगमात्रया पश्यन् दृष्ट्वा त्रसान् प्राणिनः उद्धृत्य पादं रीयेत संहृत्य पादं रीयेत (गच्छेत् ) तिरश्चीनं वा कृत्वा पादं रीयेत-गच्छेत् सति पराक्रमे संयतमेव पराक्रमेन्नो ऋजुना गच्छेत, ततः संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत्। स भिक्षुर्वा० ग्रामा गच्छन् अन्तराले स प्राणिनः वा बीजानि, हरितानि, उदकं वा मृत्तिका वा अविध्वंसमानः सति पराक्रमे यावन्नो ऋजुना गच्छेत् ततः संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत्। . .
पदार्थ- से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। गामाणुगाम-ग्रामानुग्राम-एक गांव से दूसरे गांव को। दूइजमाणे-विहार करता हुआ। पुरओ-मुख के आगे की ओर। जुगमायाए-चार हाथ प्रमाण भूमि को। पेहमाणे-देखता हुआ चले तथा मार्ग में। तसे पाणे-त्रस प्राणियों को। दठूणं-देखकर। पायं-पाद का अग्रभाग। उद्धटु-उठाकर।रीइज्जा-ईर्यासमिति पूर्वक चले।साह? पायं रीइजा-यदि अपने से दक्षिण और उत्तर में जीव को देखे तो उनकी रक्षा के लिए पैर को संकोच कर चले अथवा। वितिरिच्छं वा कटु पायं रीइजा-जीव रक्षा के निमित्त दोनों ओर जीव हों तो तिर्यक् पादः करके चले। सइ परक्कमे संजयामेव परिक्कमिजा-यदि अन्य मार्ग हो तो उस मार्ग से यत्नापूर्वक गमन करे, अर्थात् यह विधि तो अन्य मार्ग के अभाव में कथन की गई है, किन्तु। उज्जुयं-सरल मार्ग में अर्थात् सीधा। न गच्छिज्जा-गमन न करे। तओ-तदनन्तर। संजयामेव-यत्नापूर्वक ।गामाणुगामं एक गांव से दूसरे गावं को। दूइजिज्जा-विहार करे।से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। गामा० दूइज्जमाणे-ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ।अन्तरा से-उस मार्ग के मध्य में। पाणाणि वा-द्वीन्द्रियादि जीव अथवा। बीयाणि वा-शाली आदि के बीज।हरि०-अथवा हरि वनस्पति। उदए वा-अथवा जल, अथवा। मट्टिया वा-मिट्टी, जो व्यवहार पक्ष में अचित्त प्रतीत नहीं होती हो तो। सइ परक्कमे-अन्य मार्ग के होने पर साधु उस मार्ग में गमन न करे। जाव-यावत् प्राणियों से युक्त। उज्जुयं-सरल मार्ग से। न गच्छिज्जागमन न करे। तओ-तदनन्तर।संजयामेव-यत्नापूर्वक।गामा०-ग्रामानुग्राम-एक गांव से दूसरे गांव को।दूइजिजाविहार करे।
मूलार्थ-साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ अपने मुख के सामने चार हाथ प्रमाण भूमि को देखता हुआ चले और मार्ग में त्रस प्राणियों को देखकर पैर के अग्रभाग को उठाकर चले। यदि दोनों ओर जीव हों तो पैरों को संकोच कर या तिर्यक्-टेढ़ा पैर रखकर चले। यह विधि अन्यमार्ग के अभाव में कही गई है । यदि अन्य साफ मार्ग हो तो उस मार्ग से चलने का प्रयत्न करे, किन्तु जीव युक्त सरल (सीधे) मार्ग पर न चले। यदि मार्ग में प्राणी, बीज, हरी, जल और मिट्टी आदि अचित न हुए हों तो साधु को अन्य मार्ग के होने पर उस मार्ग से नहीं जाना चाहिए।