Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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सप्तम अध्ययन, उद्देशक १
३५५ साधर्मिक हैं। अन्नसंभोइया-अन्य सांभोगिक हैं अर्थात् जिनसे एक मांडले पर बैठकर आहार करने का सम्भोग नहीं है किन्तु। समणुन्ना-वे उग्र विहारी हैं अर्थात् उत्तम आचार वाले हैं यदि वे। उवागच्छिज्जा-आ जाएं। जेजो। तेण-पहले वहां ठहरे हुए साधु हैं उनको।सयमेसित्तए-स्वयं के गवेषणा किए हुए। पीढे वा-पीठ। फलए वा-फलक-पट्टा। सिज्जा वा-शय्या-वस्ती। संथारए वा-संस्तारक आदि। तेण-उस पीठ फलकादि से। तेउन। साहम्मिए-साधर्मिक जो कि। अन्नसंभोइए-अन्य सांभोगिक तथा। समणुने-उग्र विहारी-उत्तम आचार वाले हैं। उवनिमंतिज्जा-प्रेम पूर्वक निमन्त्रित करे। च-फिर। एव-अवधारणार्थक है। णं-वाक्यालंकार में है। परवडियाए-परन्तु दूसरे के लाए हुए पीठ-फलकादि। ओगिज्झिय-उनकी अपेक्षा से। नो उवनिमंतिजानिमन्त्रित न करे।
से-वह भिक्षु।आगंतारेसुवा ४-धर्मशाला आदि के विषय में। जाव-यावत्।से-वह। तत्थुग्गहंसिआज्ञा लेने पर। एवोग्गहियंसि-विशेषता से आज्ञा प्राप्त होने के पश्चात्। उस साधु को क्या करना चाहिए? इस सम्बन्ध में सूत्रकार कहते हैं कि।जे-जो। तत्थ-वहां पर।गाहावईण वा-गृहपतियों के उपकरण अथवा। गाहा. पुत्ताण वा-गृहपति के पुत्रों के उपकरण। सूई वा-वस्त्रादि के सीने वाली सूई अथवा। पिप्पलए वा-कैंचीकतरनी। कण्णसोहणए वा-कान के मल को निकालने वाली शलाका कर्णशोधक सलाई। नहच्छेयणए वा-नख छेदन करने वाला उपकरण आदि पड़े हों तो।तं-उसको।अप्पणो-अपने। एगस्स-एक के।अट्ठाएलिए। पाडिहारियं-प्रातिहारक-वापिस दिए जाने वाला। जाइत्ता-मांग कर।अन्नमन्नस्स-परस्पर अन्य साधुओं को। नो दिज वा-न दे। न अणुपइज वा-बार-बार न दे किन्तु। सयं करणिज्जति कटु-अपना कार्य पूरा करके। से-वह सामु। तमायाए-उस सूई आदि को लेकर। तत्थ-वहां गृहस्थ के पास।गच्छिज्जा २-जाए और वहां जाकर। पुव्वामेव-पहले ही। उत्ताणए हत्थे कटु-सीधा हाथ पसार कर और सूई आदि को हाथ में रख कर।वा-अथवा। भूमीए-पृथ्वी पर। ठवित्ता-रख कर फिर गृहस्थ के प्रति कहे। इमं खलु २ त्ति-यह निश्चय ही तुम्हारी वस्तु है, ऐसा कह कर वह वस्तु उसको दिखाए परन्तु। सयं पाणिणा-अपने हाथ से। परपाणिंसिगृहस्थ के हाथ में। मो पच्चप्पिणिज्जा-नदे।
मूलार्थ-आज्ञा प्राप्त कर धर्मशाला आदि में ठहरे हुए साधु के पास यदि उत्तम आचार वाले असंभोगी साधी-साधु अतिथिरूप में आ जाएं तो वह स्थानीय साधु अपने गवेषणा किए हुए पीढ़, फलक, शय्या-संस्तारक आदि के द्वारा अल्पसांभोगिक साधुओं को निमंत्रित करे, परन्तु दूसरे द्वारा गवेषित पीढ़, फलकादि द्वारा निमंत्रित न करे।
___ यदि कोई साधु गृहस्थ के पास से सूई, कैंची, कर्णशोधनिका और नखछेदक आदि उपकरण अपने प्रयोजन के लिए मांग कर लाया हो तो वह उन उपकरणों को अन्य भिक्षुओं को न दे। किन्तु अपना कार्य करके गृहस्थ के पास जाए और लम्बा हाथ करके उन उपकरणों को भूमि पर रख कर गृहस्थ से कहे कि यह तुम्हारा पदार्थ है, इसे संभाल लो, देख लो परन्तु उन सूई आदि वस्तुओं को साधु अपने हाथ से गृहस्थ के हाथ पर न रखे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि गत सूत्र में कथित विधि से आज्ञा लेकर ठहरे हुए साधु के पास कोई असम्भोगिक एवं अपने समान समाचारी का पालन नहीं करने वाले साधु आ जाएं तो वह अपने लाए हुए शय्या-संथारे या पाट-तख्त आदि से उसका सत्कार-सम्मान करे अर्थात् उसे