Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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सप्तम अध्ययन, उद्देशक २
३६७ तस्य लाभे सति तस्यालाभे सति अवग्रहं नि विहरेत्, सप्तमी प्रतिमा॥७॥इत्येतासां सप्तानां प्रतिमानामन्यतरां यथा पिण्डैषणायाम्।
पदार्थ-से भि०-वह साधु अथवा साध्वी। आगंतारेसु वा ४-धर्मशाला आदि में। जाव-यावत्। ओग्गहियंसि-आज्ञा लेने पर। जे-जो। तत्थ-वहां पर। गाहावईण वा-गृहपतियों के। गाहा. पुत्ताण वाअथवा गृहपति के पुत्रों तथा उनके सम्बन्धी जनों। इच्चेयाइं-ये जो पूर्वोक्त।आयतणाइं-कर्म बन्ध के स्थान हैं उन दोषों को। उवाइक्कम्म-अतिक्रम करके उक्त स्थानों में रहना चाहिए।अह-अथ।भिक्खू-भिक्षु।इमाहि-ये जो आगे कहे जाते हैं। सत्तहिं-सात। पडिमाहि-प्रतिमा-अभिग्रहविशेषों से। उग्गह-अवग्रह को। उग्गिण्हित्तएग्रहण करना। एवं जाणिज्जा-जानना चाहिए।खलु-निश्चयार्थक है। तत्थ-उन सात प्रतिमाओं में से।इमा-यह। पढमा-पहली। पडिमा-प्रतिमा है। से-वह भिक्षु। आगंतारेसु वा ४-धर्मशाला आदि में। अणुवीइ-विचार कर। उग्गह-अवग्रह की। जाइज्जा-याचना करे। जाव-यावत्। विहरिस्सामो-विचरूंगा। पढमा पडिमा-यह पहली प्रतिमा है। अहावरा०-अथ अपर इससे अन्य। दुच्चा पडिमा-दूसरी प्रतिमा यह है।णं-वाक्यालंकार में है। जस्स-जिस।भिक्खुस्स-भिक्षु का। एवं भवइ-इस प्रकार का अभिग्रह होता है। च-पुनः खलु-वाक्यालंकार में है। अहं-मैं। अन्नेसिं-अन्य।भिक्खूणं-भिक्षुओं के अट्ठाए-अर्थ-प्रयोजन के लिए। उग्गह-अवग्रह की। उग्गिहिस्सामि-याचना करूंगा और अण्णेसिं-अन्य।भिक्खणं-भिक्षओंका। उग्गहे-अवग्रह। उग्गहिएअवग्रह की आज्ञा ग्रहण किए जाने पर। उवल्लिस्सामि-उसमें बसूंगा-निवास करूंगा।दुच्चा पडिमा-यह दूसरी प्रतिमा है।अहावरा-अथ अपर इससे आगे। तच्चा पडिमा-तीसरी प्रतिमा कहते हैं। णं-वाक्यालंकार में।जस्सजिस भिक्षु का। एवं भवइ-इस प्रकार का अभिग्रह होता है। च खलु-पूर्ववत् ही है। अहं-मैं अन्य भिक्षुओं के लिए अवग्रह की। उग्गिहिस्सामि-याचना करूंगा। च-और। अन्नेसिं-अन्य भिक्षुओं का। उग्गहे-अवग्रह। उग्गहिए-याचना किए हुए में। नो उवल्लिस्सामि-नहीं बनूंगा अर्थात् निवास नहीं करूंगा।तच्चा पडिमा-यह तीसरी प्रतिमा है।३। अहावरा०-अथ अपर चतुर्थी प्रतिमा यह है। जस्स-जिस।भि०-भिक्षु का। एवं भवइ-इस प्रकार का अभिग्रह होता है। च खलु-पूर्ववत्। अहं-मैं । अन्नेसिं-अन्य। भिक्खूणं-भिक्षुओं के। अट्ठाएलिए। उग्गह-अवग्रह की। नो उग्गिहिस्सामि-याचना नहीं करूंगा। अन्नेसिं-अन्य भिक्षुओं के। उग्गहेअवग्रह की। उग्गहिए-आज्ञा लिए जाने पर। उवल्लिस्सामि-उसमें निवास करूंगा। चउत्था पडिमा-यह चौथी प्रतिमा है।४।अहावरा-अथ अपर-इससे अन्य। पंचमा पडिमा-पांचवीं प्रतिमा कहते हैं। णं-वाक्यालंकार में। जस्स-जिस।भिक्खुस्स-भिक्षु का। एवं भवइ-इस प्रकार का अभिग्रह होता है। च खलु-पूर्ववत्। अहं-मैं। अप्पणो अट्ठाए-अपने वास्ते। उग्गहं च-अवग्रह की। उग्गिहिस्सामि-याचना करूंगा। नो दुहं-दो के लिए नहीं। नो तिण्हं-तीन के लिए नहीं। नो चउण्हं-चार के लिए नहीं। नो पंचण्हं-पांच के लिए नहीं। पंचमा पडिमा-यह पांचवीं प्रतिमा है। अहावरा०-इससे अन्य।छट्ठा पडिमा-छठी प्रतिमा कहते हैं। से भि०-वह साधु अथवा साध्वी। जस्स एव उग्गहे-जिस उपाश्रय की आज्ञा लेकर। उवल्लिइज्जा-रहूंगा। जे तत्थ-जो वहां पर। अहासमन्नागए-समीप में ही। इक्कडे वा-तृण विशेष। जाव-यावत्। पलाले-पलाल। तस्स लाभे-उसके मिलने पर। संवसिज्जा-वसे, अर्थात् संस्तारक आदि करे। तस्स अलाभे-उसके न मिलने पर। उक्कुडुओ वाउत्कुटुक-आसन अथवा। नेसजिओ वा-निषद्या आसन पर। विहरिज्जा-विचरे। छट्ठा पडिमा-यह छठी प्रतिमा है। अहावरा-अथ अपर- इससे अन्य।सत्तमा पडिमा-सातवीं प्रतिमा कहते हैं। जे भिक्खू-जो साधु या