Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
. त्रयोदश अध्ययन
४०९ को।संवाहिज वा-संमर्दन करे अथवा। पलिमदिज वा-सर्व प्रकार से मर्दन करे तो।तं-साधु उस क्रिया को। नो सायए-मन से भी न चाहे और। तं-उसको। नो नियमे-वचन और काया से न कराए। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उस साधु के।पायाई-चरणों को। फुसिज वा-स्पर्शित करे। रइज्ज वा-अथवा रंगे तो। तंउस क्रिया को। नो सायए-मन से न चाहे। तं-उसको। नो नियमे-वचन और काया से न कराए। सियाकदाचित्। परो-गृहस्थ। से-साधु के। पायाइं-चरणों को। तिल्लेण वा-तैल से। घ०-घृत से। वसाए वाअथवा वसा-औषधि विशेष से या सुगन्धित द्रव्य से।मक्खिज वा-मसले।अब्भिंगिज वा-विशेष रूप से मर्दन करे तो। तं-साधु उस क्रिया को। नो सायए-मन से न चाहे और। तं-उस क्रिया को। नो-नियमे-वाणी और शरीर से न कराए। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उसके-साधु के। पायाई-चरणों को। लुद्धण वा-लोध्र से। कक्केण वा-कर्क नामक द्रव्य विशेष से। चुन्नेण वा-चूर्ण से-गोधूमादि के चूर्ण से।वण्णेण वा-अबीर आदि वर्ण से। उल्लोढिज वा-उद्वर्तन करे अथवा। उव्वल्लिज वा-शरीर को संसृष्ट करे तो।तं-उस क्रिया को। नो सायए-मन से न चाहे तधा। तं-उसको। नो नियमे-वाणी और शरीर से न कराए। सिया-कदाचित्। परोगृहस्थ। से-उसके-साधु के। पायाइं-पैरों को। सीओदगवियडेण वा-शीतल स्वच्छ एवं निर्मल जल से या। उसिणोदगविः-उष्ण जल से। अच्छोलिज्ज वा-छींटे दे या। पहोविज वा-धोए तो। तं-उस क्रिया को। नो सायए-मन से न चाहे और। तं-उसको। नो नियमे-वचन और काया से न कराए। सिया-कदाचित्। परोगृहस्थ।से-उस साधु के।पायाइं-पैरों को।अन्नयरेण-अन्य किसी।विलेवणजाएण-विलेपन से।आलिंपिज्ज वा-आलेपित करे। विलिंपिज वा-विलेपित करे तो। तं-उस क्रिया को। नो सायए-मन से न चाहे। तं नो नियमे-उस क्रिया को वचन और काया से न करावे। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ।से-उस साधु के। पायाइंपैरों को।अन्नयरेण-अन्य किसी। धूवणजाएण-धूप से। धूविज वा-धूपित करे। विधूविज वा-विधूपित करे तो। तं नो सायए-उस क्रिया को मन से न चाहे। तं नो नियमे-उसको वाणी और शरीर से न कराए। सियाकदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उस साधु के। पायाओ-पैरों से।खाणुयं वा-खानु या। कंटयं-कंटक-कांटे को। निहरिज वा-निकाले या। विसोहिज वा-चरण को कंटक के शल्य से विशुद्ध करे तो। तं नो सायए-उसको मन से न चाहे। तं नो नियमे-उसको वचन और काया से न कराए। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उसकेसाधु के। पायाओ-चरणों से। पूयं वा-पीप-राध को। सोणियं वा-या शोणित-खून को। नीहरिज-निकाल कर। विसोहिज्ज वा-चरणों को शुद्ध करे तो। तं नो सायए-उस क्रिया को मन से न चाहे। तं नो नियमेउसको वचन और शरीर से न कराए।
- सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उसके-साधु के। कार्य-शरीर को।आमजेज वा-वस्त्रादि से पोंछे। पमजिज वा-बार-बार पोंछे तो। तं नो सायए-उस क्रिया को मन से न चाहे। तं नो नियमे-उसे वचन
और काया से न कराए। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ।से-उसके। कार्य-शरीर को। संवाहिज वा-संवाहनसंमर्दन करे। पलिमद्दिज वा-या पूरी तरह से मालिश करे तो।तं नो सायए-उस क्रिया को साधु मन से न चाहे तथा। तं नो नियमे-वाणी और शरीर से न कराए। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उस साधु के। कायंशरीर को। तिल्लेण वा-तैल से। घ० वा-या घृत से। वसा-या वसा-औषधि विशेष से या सुगन्धित द्रव्य से।