Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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त्रयोदश अध्ययन
४११ को देखकर। परो-गृहस्थ उसे। अन्न-अन्य किसी। सत्थजाएण-शस्त्र विशेष से। अच्छिंदित्ता वा-थोड़ा सा छेदन करके।विच्छिंदित्ता वा-विशेष रूप में छेदन करके उस में से। पूर्व वा-पीप को।सोणियं वा-या शोणित खून को।नीहरिज वा-निकाले।वि-या विशुद्ध करे तो।तं-गृहस्थ की उक्त क्रिया को साधु। नो सायए- मन से न चाहे । तं नो नियमे-उक्त क्रिया को वचन तथा काया से न कराए।
सिया-कदाचित्। से-उस साधु के। कायंसि-शरीर में होने वाले। गंडं वा-गंड-व्रण विशेष को। अरइं वा-अरति-अर्श विशेष को। पुलइयं वा-पुलक-व्रण विशेष को। भगंदलं वा-अथवा भगन्दर नाम के व्रण विशेष को देखकर। परो-गृहस्थ यदि उसे।आमजिज वा-वस्त्रादि से थोड़ा सा साफ करे।पमजिज्ज वाअथवा विशेष रूप से प्रमार्जित करे तो साधु। तं नो सायए नो नियमे-उसको मन से न चाहे, वाणी से न कहे और शरीर से न कराए। सिया-कदाचित्। से-साधु के। कायंसि-शरीर में उत्पन्न हुए। गंडं वा ४-फोड़े आदि को देखकर। परो-गृहस्थ उसे। संवाहिज वा-संवाहन करे-थोड़ा सा मसले। पलि-सर्व प्रकार से संमर्दन करेमसले तो साधु। तं नो सायए तं नो नियमे-गृहस्थ की इस क्रिया को न मन से चाहे, न वचन और काया से कराए। सिया-कदाचित्। से-साधु के। कायंसि-शरीर में उत्पन्न हुए। गंडं वा ४-गंडादि व्रण को देखकर। परो-गृहस्थ उसे। तिल्लेण वा-तैल से। घ०-घृत से। वसा -किसी सुगन्धित द्रव्य से। मक्खिज वा २-मसले तो। तं-उस क्रिया को। नो सायए-मन से न चाहे। तं नो नियमे-उसको वाणी और शरीर से न कराए। सियाकदाचित्। से-साधु के। कायंसि-शरीर में उत्पन्न हुए। गंडं वा ४-गंडादि व्रण को देखकर। परो-गृहस्थ उसे। लुद्धेण वा ४- लोधादि से। उल्लेढिज वा-उद्वर्तन करे। उ०-अथवा संसृष्ट करे।तं नो सायए-उस क्रिया को मन से न चाहे।तं नो नियमे-उस क्रिया को वचन और काया से न कराए।सिया-कदाचित्। से-उसके-साधु के। कायंसि शरीर में से उत्पन्न हुए। गंडं वा-फोडे आदि को देख कर। परो-गृहस्थ उसे। सीओदग०-शीतोदक से। उ०-अथवा उष्णोदक से। उच्छोलिज्ज वा-उत्क्षालन करे-छींटे देवे। प०-अथवा प्रक्षालन करे-धोवे। तं-उस क्रिया को साधु। नो सायए-मन से न चाहे। तं-उस क्रिया को साधु। नो नियमे-वाणी से न कहे तथा शरीर से न कराए। सिया-कदाचित्। से-उसके-साधु के। कायंसि-शरीर में उत्पन्न हुए। गंडं वा ४- गंडादि व्रणों को देख कर। परो-गृहस्थ उन्हें। अन्नयरेण-किसी। सत्थजाएण-शस्त्र विशेष से। अच्छिंदिज वा-थोड़ा सा छेदन करे। वि०-विशेष छेदन करे, तथा। अन्न सत्थ०-अन्य किसी शस्त्र विशेष से उस व्रण को। अच्छिंदित्ता वा२-थोड़ा या अधिक छेदन करके उसमें से। पूयं वा-पीप को।सोणियं वा-या शोणित को।नीहरि-निकाल कर। विसोहि-उसे विशुद्ध करे तो। तं-उस क्रिया को। नो सायए-साधु मन से न चाहे। तं-उस क्रिया को साधु। नो नियमे-वाणी से न कहे और शरीर से न कराए।
सिया-कदाचित्। से-उसके-साधु के। कायंसि-शरीर में उत्पन्न हुए। सेयं वा-स्वेद को देखकर। परो-गृहस्थ अथवा शरीर में उत्पन्न हुए। जल्लं वा-मलयुक्त जल को देखकर उसे। नीहरिज वा-निकाले। वि०-विशुद्ध करे तो। तं-उस क्रिया को। नो सायए-साधु मन से न चाहे। तं नो नियमे-उस क्रिया को वाणी और शरीर से न कराए। सिया-कदाचित्। परो-गृहस्थ। से-उसके-साधु के।अच्छिमलं वा-आंख के मैल को। कण्णमलं वा-कान के मैल को। नहमलं वा-नखों के मैल को। नीहरिज वा-दूर करे। वि०-अथवा विशुद्ध