Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अष्टम अध्ययन
३७३ पडिमाणं जाव पंग्गहियतरायं विहरिज्जा, नो किंचिवि वइज्जा, एयं खलु तस्स जाव तस्स. जाव जइज्जासि त्तिबेमि॥१६३॥
___ छाया- स भिक्षुर्वा० अभिकांक्षेत् स्थानं स्थातुं स अनुप्रविशेद् ग्रामं वा यावत् राजधानी वा, स यत् पुनः स्थानं जानीयात्-साण्डं यावत् मर्कटासन्तानकं तत् तथाप्रकारं स्थानमप्रासुकमणेषणीयं लाभेसति नो प्रतिगृह्णीयात्। एवं शय्यागमेन नेतव्यम्, यावत् उदकप्रसृतानि, इति, इत्येतानि आयतनानि उपातिक्रम्य २ अथ भिक्षुः इच्छेत् चतसृभिः प्रतिमाभिः स्थानं स्थातुम्, तत्र, इयं प्रथमा प्रतिमा-अचित्तं खलु उपाश्रयिष्यामि अवलम्बयिष्ये कायेन विपरिक्रमिष्यामि सविचारं स्थानं स्थास्यामि प्रथमा प्रतिमा॥१॥ अथापरा द्वितीया प्रतिमा-अचित्तं खलु उपाश्रयिष्यामि अवलम्बयिष्ये कायेन विपरिक्रमिष्यामि नो सविचारं स्थानं स्थास्यामि द्वितीया प्रतिमा॥२॥अथापरा तृतीया प्रतिमा-अचित्तं खलु उपाश्रयिष्यामि अवलम्बयिष्ये नो कायेन विपरिक्रमिष्यामि नो सविचारं स्थानं स्थास्यामीति तृतीया प्रतिमा॥३॥ अथापरा चतुर्थी प्रतिमा-अचित्तं खलु उपाश्रयिष्यामि नो अवलम्बयिष्ये कायेन नो परिक्रमिष्यामि नो सविचारं स्थानं स्थास्यामीति व्युत्सृष्टकायः व्युत्सृष्टकेशश्मश्रुलोमनखः संनिरुद्धं वा स्थानं स्थास्यामीति चतुर्थी प्रतिमा॥४॥ इत्येतासां चतसृणा प्रतिमानां यावत् प्रगृहीतान्यतरां विहरेत् नो किंचिदपि वदेत्। एतत् खलु तस्य यावद् तस्य यावत् यतेत, इति ब्रवीमि। स्थानसप्तैककः समाप्तः।
पदार्थ- से भिक्खू वा-वह साधु अथवा साध्वी यदि। ठाणं-स्थान में। ठाइत्तए-स्थित होना। अभिकंखेजा-चाहे, तो।से-वह भिक्षु।गामं वा-ग्राम में, नगर में। जाव-यावत्। रायहाणिं वा-राजधानी में। अणुपविसिजा-प्रवेश करे और वहां प्रवेश करके।से जं पुण-वह जो फिर। ठाणं-स्थान को। जाणिज्जाजाने-अर्थात् स्थान का अन्वेषण करे।सअंडं-जो स्थान अण्डादि से। जाव-यावत्। मक्कडासन्ताणयं-मकड़ी आदि के जाले से युक्त है। तं-उस। तह-तथाप्रकार के। ठाणं-स्थान को। अफासुयं-अप्रासुक तथा।अणेसअनेषणीय जानकर।लाभे संते-मिलने पर भी।नो प०-ग्रहण न करे अर्थात् ऐसे स्थान में न ठहरे।एवं-इसी प्रकार अन्य सूत्र भी। सिज्जागमेण-शय्या अध्ययन के समान जान लेना। जाव-यावत्। उदयपसूयाइंति-उदकप्रसूत कन्दादि, अर्थात् जिस स्थान में कन्दादि विद्यमान हों उसे भी ग्रहण न करे।इच्चेयाइं-ये पूर्वोक्त तथा वक्ष्यमाण जो। आयतणाई-कर्मोपादान रूप दोष स्थान हैं इनको। उवाइक्कम्म-छोड़कर अर्थात् इनका उल्लंघन करके।अहअथ तदनन्तर। भिक्खू-भिक्षु-साधु। चउहिं पडिमाहि-वक्ष्यमाण-आगे कही जाने वाली चार प्रतिमाओं के अनुसार। ठाणं-स्थान में।ठाइत्तए-ठहरने की।इच्छिज्जा-इच्छा करे।तत्थ-उनमें से। इमा-यह। पढमा-पहली। पडिमा-प्रतिमा है; यथा। खलु-निश्चयार्थक है। अचित्तं-अचित्त स्थानक में। उवसजिज्जा-आश्रय लूंगा और। अवलंबिज्जा-अचित भीत आदि का सहारा लूंगा। काएण-काया से। विप्परिकम्माइ-हाथ-पैर आदि का संकोचन प्रसारण करूंगा तथा। सवियारं-थोड़ा सा पाद आदि का संप्रसारण-मर्यादित भूमि से बाहर पैरों को थोड़ा सा भी नहीं फैलाऊंगा इस प्रकार।ठाणं-खड़े होकर।ठाइस्सामि-ठहरूंगा-अर्थात् मर्यादित भूमि में ही हाथ