Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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३२२ _ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध मे वत्थेति कटु नो बहुदे सीओदगवियडेण वा २ जाव पहोइजा॥से भिक्खू वा २ दुब्भिगंधे मे वत्थेत्तिकटु नो बहु० सिणाणेण तहेव बहुसीओ० उस्सिं. आलावओ॥१४७॥ ____ छाया- स भिक्षुः स यत् सांडं ससन्तानकं तथाप्रकारं वस्त्रमप्रासुकं न प्रतिगृपीयात्। स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा स यत् अल्पांडं यावत् अल्पसन्तानक-मनलमस्थिरमध्रुवमधारणीयं रोच्यमानं न रोचते तथाप्रकारमप्रासुकं न प्रतिगृह्णीयात्।स भिक्षु० स यत् अल्पांडं यावत् अल्पसन्तानकमलं स्थिरं ध्रुवं धारणीयं रोच्यमानं रोचते तथाप्रकारं वस्त्रं प्रासुकं प्रतिगृह्णीयात्।सभिक्षु० नो नवं मे वस्त्रमिति कृत्वा नो बहुदेश्येन स्नानेन वा यावत् प्रघर्षयेत्, स भिक्षु नो नवं मे वस्त्रमितिकृत्वा नो बहुदेश्येन शीतोदकविकटेन वा यावत् प्रधावेत् (प्रक्षालयेत् )। स भिक्षुर्वा २ दुर्भिगन्धं मे वस्त्रमिति कृत्वा नो बहुदेश्येन स्नानेन तथैव बहुशीतोदकेन वा उष्णोदकविकटेन वा आलापकः।
पदार्थ- से भि०-वह साधु अथवा साध्वी। से जं-वस्त्र के सम्बन्ध में जाने, जैसे कि-। सअंडंअंडों से युक्त। जाव-यावत्। ससंताणगं-मकड़ी के जाले आदि से युक्त। तहप्प०-तथा प्रकार के। वत्थं-वस्त्र को।अफा०-अप्रासुक जानकर। नो पङि-ग्रहण न करे। से भि०-वह साधु या साध्वी। से जं०-वस्त्र के सम्बन्ध में जाने, यथा।अप्पंडं-अंडों से रहित। जाव-यावत्।अप्पसंताणगं-मकड़ी के जालों से रहित।अनलं-अभीष्ट कार्य करने में असमर्थ । अथिरं-अस्थिर-जीर्ण। अधुवं-अधुव-जो कि थोड़े काल की आज्ञा होने से धुव नहीं हैं। अधारणिजं-धारण करने के अयोग्य। रोइज्जतं-अच्छा सुन्दर वस्त्र देते हुए भी। नरुच्चइ-दाता को नहीं रुचता अर्थात् दाता का मन प्रसन्न न हो अथवा यदि वह वस्त्र साधु को भी रुचता न हो-अनुकूल न हो तो। तहप्प०-उस वस्त्र को।अफा०-अप्रासुक जानकर। नो पडिगाहिज्जा-ग्रहण न करे।
से भि०-वह साधु अथवा साध्वी। से जं.-वस्त्र को जाने, यथा-। अप्पंडं अंडों से रहित । जावयावत्। अप्पसंताणगं-मकड़ी आदि के जालों से रहित। अलं-अभीष्ट कार्य करने में समर्थ। थिरं-स्थिर और। धुवं-ध्रुव-जिसकी साधु को सदा के लिए आज्ञा दे दी गई हो। धारणिज-धारण करने के योग्य तथा।रोइज्जतंगृहस्थ की देने की रुचि को देख कर यदि। रुच्चइ-साधु को रुचे तो। तहप्प-तथाप्रकार के। वत्थं-वस्त्र को। फासु-प्रासुक जान कर मिलने पर। पडि०-साधु ग्रहण कर ले।से भि०२-वह साधु या साध्वी। तिकटु-ऐसा विचार कर कि। मे-मेरे पास। नवए-नवीन। वत्थं-वस्त्र। नो-नहीं है। बहुदेसिएण-थोड़े बहुत। सिणाणेण वा-स्नानादि सुगन्धित द्रव्य से। जाव-यावत्।नो पघंसिजा-प्रघर्षित न करे।से भि०२-वह साधु अथवा साध्वी। मे-मेरे पास। नो-नहीं है। नवए-नवीन। वत्थं-वस्त्र। तिकटु-ऐसे विचार कर। बहुदेसि०-थोड़े बहुत। सीओदगवियडेण वा-शीतोदक अर्थात् निर्मल शीतल जल से तथा उष्ण जल से।जाव-यावत्। नो पहोइज्जाप्रक्षालन न करे अर्थात् विभूषा के लिए एक या एक से अधिक बार न धोए। से भिक्खू वा २-वह साधु या साध्वी। मे-मेरा। वत्थं-वस्त्र। दुब्भिगंधे-दुर्गन्ध युक्त है। तिकटु-ऐसा विचार कर। बहुदे-थोड़े बहुत। सिणाणेण-सुगन्धित द्रव्य से। तहेव-उसी प्रकार। बहुसीओ०-बहुत से शीतल जल से तथा। उसिणो-उष्ण जल से। नो०-नहीं धोए। आलावओ-यह आलापक भी पूर्ववत् ही है।