Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक २
३४९ होता, यदि वह मजबूत है। क्योंकि, चलते हुए मजबूत पात्र को परठना एवं परठने वाले का समर्थन करना दोष युक्त माना है और उसके लिए आगम में लघु चातुर्मासी प्रायश्चित बताया है।
___ इससे स्पष्ट होता है कि साधु उस पानी को न तो कुएं आदि में फैंके, न पात्र सहित ही परठे, परन्तु एकान्त छाया युक्त स्निग्ध स्थान में विवेक पूर्वक परठे।
वस्त्र आदि की तरह पात्र के सम्बन्ध में भी यह बताया गया है कि साधु जब भी आहार-पानी के लिए गृहस्थ के घर में जाए या शौच के लिए बाहर जाए या स्वाध्याय भूमि में जाए तो अपने पात्र को साथ लेकर जाए। इससे स्पष्ट होता है कि साधु को बिना पात्र के कहीं नहीं जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि पात्र किसी भी समय काम में आ सकता है। अतः उपाश्रय से बाहर जाते समय उसे साथ रखना उपयुक्त प्रतीत होता है।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त॥ ॥ षष्ठ अध्ययन समाप्त॥
१
जे भिक्खू पडिग्गहं अलं, थिरं, धुवं, धारणिजं णो धरइ धारतं वा साइज्जइ।
-निशीथ सूत्र, उद्देशक १४।