Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक १
२८९ आमन्त्रयन् आमंत्रितां वा अशृण्वतीम् एवं वदेत्-आयुष्मति इति वा, भगिनि ! इति वा, भवतीति वा, भगवतीति वा, श्रावके ! इति वा, उपासिके ! इति वा, धार्मिके ! इति वा, धर्मप्रिये ! इति वा, एतत्प्रकारां भाषामसावद्यां यावद् अभिकांक्ष्य भाषेत।
पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा २-साधु या साध्वी। पुमं-पुरुष को। आमंतेमाणे-आमन्त्रण करता हुआ। आमंतिए वा-अथवा आमन्त्रित किए जाने पर। अप्पडिसुणेमाणं-उसे सुनाई न दे तो उसे। एवं-इस प्रकार। नो वइजा-न कहे। होलिति वा-हे होल। गोलित्ति वा-हे गोल ! ये दोनों शब्द अवज्ञा के सूचक हैं, अथवा। वसुलेति वा-हे वृषल ! कुपक्खेति वा-हे कुपक्ष ! घडदासित्ति वा-हे घटदास ! इस प्रकार तथा। साणेत्ति वा-हे श्वान-कुत्ते ! तेणेति वा-हे चोर ! चारिएत्ति वा-हे गुप्तचर ! माईत्ति वा-हे छलिए ! मुसावाइत्ति वा-हे मृषावादी-झूठ बोलने वाले ! इस प्रकार न कहे अथवा। एयाइं तुमं-तू ऐसा ही है या। ते जणगा वा-तेरे माता-पिता भी ऐसे ही हैं। एयप्पगारं-इस प्रकार की।भासं-भाषा जो कि।सावजं-पापयुक्त। सकिरियं-क्रिया युक्त। जाव-यावत्। भूओवघाइयं-प्राणियों की विनाशक है उसे। अभिकंख-विचार करमन में सोचकर। नो भासिज्जा-साधु ऐसी भाषा न बोले। से भिक्खू वा०-वह साधु या साध्वी पुमं-पुरुष को।
आमंतेमाणे-बुलाता हुआ।आमंतिए वा-बुलाए जाने पर।अप्पडिसुणेमाणे-उसके न सुनने पर।एवं वइज्जाइस प्रकार कहे। अमुगेइ वा-हे अमुक ! अर्थात् उसका जो नाम हो उस नाम से। आउसोत्ति वा-अथवा हे आयुष्मन् ! इस प्रकार।आउसंतारोत्ति वा-अथवा हे आयुष्मानों ! सावगेत्ति वा-हे श्रावक ! उवासगेत्ति वाहे उपासक! अथवा। धम्मिएत्ति वा-हे धार्मिक ! अथवा।धम्मपिएत्ति वा-हे धर्म प्रिय ! एयप्पगारं-इस प्रकार की। असावजं-असावद्य-पाप रहित। जावं-यावत्। अभिकंख-विचार कर । भासं-भाषा को। भासिजाबोले।से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। इत्थिं-स्त्री को।आमंतेमाणे-आमन्त्रित करता हुआ-बुलाता हुआ। आमंतिए वा-अथवा आमन्त्रित किए जाने पर। अप्पडिसुणेमाणिं-उसके न सुनने पर। एवं-इस प्रकार। नो वइज्जा-न कहे यथा। होलीइ वा-हे होली इस प्रकार तथा। गोलीति वा-हे गोली इस प्रकार। इत्थीगमेणंपूर्वोक्त सम्पूर्ण आलापक स्त्री के सम्बन्ध में भी। नेयव्वं-जान लेने चाहिएं। से भिक्खू वा०-वह साधु या साध्वी। इत्थिं-स्त्री को। आमंतेमाणे-आमन्त्रित करता हुआ। आमंतिए वा-अथवा आमन्त्रित किए जाने पर। अप्पडिसुणेमाणिं-उसके न सुनने पर। एवं वइजा-इस प्रकार कहे, जैसे कि।आउसोत्ति वा-हे आयुष्मति ! भइणिति वा-हे भगिनि ! भोईति वा-हे पूज्ये ! भगवईति वा-हे भगवती ! तथा। साविगेति वा-हे श्राविके! उवासिएत्ति वा-हे उपासिके! धम्मिएति वा-हे धार्मिके ! और।धम्मपिएति वा-हे धर्म प्रिये ! एयप्पगारं-इस प्रकार की।भासं-भाषा को जो कि।असावजं-असावद्य है। जाव-यावत्।अभिकंख-विचार कर। भासिज्जाबोले। .
.. मूलार्थ-संयमशील साधु या साध्वी पुरुष को आमंत्रित करते हुए उसके न सुनने पर उसे हे होल ! हे गोल ! हे वृषल ! हे कुपक्ष ! हे घटदास ! हे श्वान! हे चोर ! हे गुप्तचर ! हे कपटी ! हे मृषावादी ! तुम हो क्या और तुम्हारे माता-पिता भी इसी प्रकार के हैं। विवेक शील साधु इस तरह की सावध, सक्रिय यावत् जीवोंपघातिनी भाषा को न बोले। किन्तु संयमशील साधु अथवा साध्वी कभी किसी व्यक्ति को आमंत्रित कर रहे हों और वह न सुने तो उसे इस प्रकार संबोधित करे-हे अमुक व्यक्ति ! हे आयुष्मन् ! हे आयुष्मानों ! हे श्रावक ! हे उपासक ! हे धार्मिक ! हे धर्म प्रिय!