Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचारांग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध इसके लिए सूत्रकार ने जो 'सुहुमा' शब्द का प्रयोग किया है, उसका यही अर्थ है कि मुनि को कुशाग्र एवं सूक्ष्म (गहरी) दृष्टि से विचार करके विवेक पूर्वक भाषा का प्रयोग करना चाहिए। परन्तु, वृत्तिकार ने इसका अर्थ यह किया है कि सूक्ष्म-कुशाग्र बुद्धि से सम्यक् पर्यालोचन करने पर कभी-कभी असत्य भाषा भी सत्य का स्थान ग्रहण कर लेती है। जैसे किसी शिकारी या हिंसक द्वारा मृग आदि के विषय में पूछने पर देखने पर भी सत्य को प्रकट नहीं किया जाता। यह ठीक है कि झूठ नहीं बोलना चाहिए, परन्तु साथ में यह भी तो है कि ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए जो दूसरे प्राणी के लिए कष्टकर हो। इस तरह का सत्य भी झूठ हो जाता है। परन्तु, वृत्तिकार के ये विचार कहां तक आगम से मेल खाते हैं, विद्वानों के लिए विचारणीय हैं।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्-से भिक्खू वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अप्पडिसुणेमाणं नो एवं वइजा-होलित्ति वा गोलित्ति वा वसुलेत्ति वा कुपक्खेत्ति वा घडदासित्ति वा साणेत्ति वा तेणित्ति वा चारिएत्ति वा माइत्ति वा मुसावाइत्ति वा, एयाइं तुम ते जणगा वा, एयप्पगारं भासं सावजं सकिरियं जाव भूओवघाइयं अभिकंख नो भासिज्जा। से भिक्खू वा. पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अप्पडिसुणेमाणे एवं वइजा-अमुगेइ वा आउसोत्ति वा आउसंतारोत्ति वा सावगेत्ति वा उवासगेत्ति वा धम्मिएत्ति वा धम्मपिएत्ति वा, एयप्पगारं भासं असावजं जाव अभिकंख भासिजा।से भिक्खूवा २ इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुणेमाणिं नो एवं वइज्जा-होली इ वा गोलीति वा इत्थीगमेणं नेयव्वं॥से भिक्खू वा २ इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुणेमाणिं एवं वइज्जा-आउसोत्ति वा भइणित्ति वा भोईति वा भगवईति वा साविगेति वा उवासिएत्ति वा धम्मिएत्ति वा, धम्मप्पिएत्ति वा, एयप्पगारं भासं असावजं जाव अभिकंख भासिज्जा ॥१३४॥
छाया- स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा पुमांसम् आमंत्रयन् आमंत्रितं वा अशृण्वन्तं नैवं वदेत्-होल इति वा गोल इति वा वृषल इति वा कुपक्ष इति वा घटदास इति वा श्वेति वा स्तेन इति वा चारिक इति वा मायीति वा मृषावादीति वा एतानि त्वं तव जनकौ वा एतत्प्रकारां भाषां सावद्यां सक्रियां यावद् भूतोपघातिकाम् अभिकांक्ष्य न भाषेत। स भिक्षुर्वाः पुमांसं आमन्त्रयन् आमंत्रितो वा अशृण्वन्तं एवं वदेत्-अमुक इति वा आयुष्मन् ! इति वा, आयुष्मन्त इति वा, श्रावक इति वा, उपासक इति वा, धार्मिक इति वा, धर्मप्रिय इति वा, एतत्प्रकारां भाषामसावद्यां यावत् अभिकांक्ष्य भाषेत। स भिक्षुर्वा २ स्त्रियं आमन्त्रयन् आमंत्रितां वा अशृण्वतीं नो एवं वदेत-होलीति वा, गोलीति वा, स्त्रीगमेन नेतव्यम्। स भिक्षुर्वा २ स्त्रियं