Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
बहिन ! क्या तुम | मे - मुझे । इत्तो - इन वस्त्रों में से । अन्नयरं - किसी । वत्थं - वस्त्र को । दाहिसि दोगे ? तहप्प०तथाप्रकार के । वत्थं - वस्त्र की । सयं वा० - स्वयं याचना करे या । परो यदि गृहस्थ बिना मांगे ही देवे तो । फासुर्य - प्रासु तथा । एस० - एषणीय जानकर । लाभे० - मिलने पर । पडि० ग्रहण कर ले। दुच्चा पडिमा यह दूसरी प्रतिमा - अभिग्रह विशेष है। अहावरा तच्चा पडिमा अब तीसरी प्रतिमा को कहते हैं। से भिक्खू वा० - वह साधु या साध्वी से जं पुण० - फिर वस्त्र के सम्बन्ध में जाने। तं०-जैसे कि । अंतरिज्जं वा गृहस्थ का भीगा हुआ अथवा । । उत्तरिज्जं वा गृहस्थ के पहनने का उत्तरासन। तहप्पगारं तथाप्रकार के । वत्थं वस्त्र की । सयं स्वयं याचना करे या गृहस्थ बिना मांगे ही स्वयं देवे तो प्रासुक और एषणीय जानकर मिलने पर । पडि० - ग्रहण कर ले। तच्चा पडिमा - यह तीसरी प्रतिमा है। अहावरा चउत्था पडिमा अब चौथी प्रतिमा को कहते हैं। से भिक्खू वा०-वह-संयमशील साधु या साध्वी । उज्झियधम्मियं उत्सृष्ट धर्म वाला अर्थात् जो गृहस्थ ने भोग लिया है। और जो फिर उसके काम में आने वाला नहीं इस प्रकार के । वत्थं - वस्त्र की । जाइज्जा याचना करे। जं च और जिसको। अन्ने-अन्य। बहवे बहुत से । समण० - शाक्यादि भिक्षु यावत् । वणीमगा- भिखारी लोग। नांवकंखंतिनहीं चाहते । तहप्प० - तथाप्रकार के । उज्झिय० - उज्झित धर्म वाले । वत्थं वस्त्र को । सयं स्वयं मांगे। परो०गृहस्थ दे तो । फासूयं प्रासुक। जाव- यावत् एषणीय जानकर । पडिगा०- ग्रहण कर ले। चउत्था पडिमा - यह चौथी प्रतिमा कही है । इच्चेयाणं-इन । चउण्हं पडिमाणं चार प्रतिमाओं के विषय में। जहा जैसे। पिण्डेसणाएपिण्डैषणा अध्ययन में वर्णन किया गया है उसी प्रकार यहां समझना चाहिए। णं-वाक्यालंकार में है। सियाकदाचित्। एताए-इन पूर्वोक्त। एसणाए - एषणा अर्थात् वस्त्रैषणा से । एसमाणं-वस्त्र की गवेषणा करने वाले साधु के प्रति । परो-कोई अन्य गृहस्थ । वइज्जा - कहे कि । आउसंतों समणा - आयुष्मन् श्रमण। तुमं इज्जाहि- तुम इस समय जाओ ! किन्तु । मासेण वा एक मास के बाद अथवा । दसराएण वा दस दिन के बाद अथवा | पंचराएंण वा- पांच दिन के बाद अथवा । सुते सुततरे वा - कल या कल के अन्तर से तुम आना। तो तब । वयंहम । ते-तेरे को । वत्थं-वस्त्र । दाहामो - देवेंगे। एयप्पगारं - इस प्रकार के । निग्घोसं - शब्द को । सुच्चा -सुनकर। निसम्म - हृदय में धारण कर । से - वह साधु । पुव्वामेव पहले ही । आलोइज्जा - देखे और देखकर इस प्रकार कहे । आउसोत्ति वा० - आयुष्मन् गृहस्थ ! अथवा भगिनि ! नो मे कप्पड़-मुझे नहीं कल्पता । एयप्पगारं - इस प्रकार का । संगारं-प्रतिज्ञा वचन । पडिसुणित्तए - सुनना अर्थात् मैं आपके इस प्रतिज्ञा वचन को स्वीकार नहीं कर सकता यदि तुम । मे मुझे। दाउं- देना । अभिकंखसि चाहते हो तो । इयाणीमेव- इसी समय । दलयाहि-दे दो । से एवं वयंतं - उस साधु के इस प्रकार कहने पर भी यदि । परो - गृहस्थ । वइज्जा - कहे कि । आउ० स० - आयुष्मन् श्रमण ! अणुगच्छाहि- अब तो तुम जाओ, थोड़े समय के पश्चात् तुम लेने आ जाना। तो उस समय पर । वयंहम । ते तुझे । अन्न० - कोई । वत्थं - वस्त्र । दाहामो दे देंगे। से पुव्वामेव आलोइज्जा- वह साधु पहले ही देखे और देखकर गृहस्थ के प्रति कहे । आउसोत्ति वा २ - आयुष्मन् गृहस्थ ! अथवा भगिनि । संगारवयणे - प्रतिज्ञा युक्त वचन | पडिसुणित्तए० - स्वीकार करना । नो खलु मे कप्पइ-मुझे नहीं कल्पता। यदि मुझे तुम देना चाहते हो तो इसी समय दे दो। सेवं वयंतं - इस प्रकार बोलते हुए भिक्षु के प्रति । से परो णेया- वह नेता - गृहस्थ घर के किसी व्यक्ति को यदि । वइज्जा कहे कि । आउसोत्ति वा - हे आयुष्मन् ! अथवा । भइणित्ति वा - हे बहिन ? एयं वत्थंवह वस्त्र। आहर-लाओ। समणस्स - साधु को । दाहामो देंगे। अवियाई - यद्यपि । वयं हम। पच्छावि-पीछे भी। अप्पणी सयट्ठाए - अपने लिए। पाणाई प्राणियों का। समारब्भ-समारम्भ करके । समुद्दिस्स- उद्देश्य
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