Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२६२
श्री आचाराङ्ग सूत्रम्,
द्वितीय श्रुतस्कन्ध
इस ग्राम यावत् राजधानी में अन्न, पानी, मनुष्य एवं धान्य बहुत है या थोड़ा है ? ऐसे प्रश्नों को पूछने पर साधु जवाब न देवे और उसके बिना पूछे भी ऐसी बातें न करे। परन्तु, वह मौन भाव से विहार करता रहे और सदा संयम साधना में संलग्न रहे।
हिन्दी विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि विहार करते समय रास्ते में यदि कोई पथिक मुनि से पूछे कि जिस गांव या शहर से तुम आ रहे हो उसमें कितने हाथी-घोड़े हैं, कितना अन्न है, कितने मनुष्य हैं अर्थात् वह गांव धन-धान्य से सम्पन्न है या अभाव ग्रस्त है ? तो मुनि को इसका कोई उत्तर नहीं देना चाहिए। क्योंकि, इस चर्चा से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है और न यह चर्चा आत्म विकास में ही सहायक है। यह तो एक तरह की विकथा है, जो आध्यात्मिक प्रगति में बाधक मानी गई है। इसलिए साधु को उस समय मौन रहना चाहिए। यदि पूछने वाला कोई आध्यात्मिक साधक हो और उससे आध्यात्मिक विचारों के प्रसार होने की सम्भावना हो तो साधु के लिए उक्त प्रश्नों का उत्तर देने का निषेध नहीं है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह प्रतिबन्ध इस लिए लगाया गया है कि केवल व्यर्थ की बातों में साधक का समय नष्ट न हो ।
कुछ हस्त लिखित प्रतियों में " अप्पजवसे" पद के आगे यह पाठ मिलता है- " एयष्पगाराणि परिणाणि पुट्ठो वा अपुट्ठो वा नो आइक्खेज्जा एयप्पगाराणि पसिणाणि नो पुच्छेज्जा ।" और उपाध्याय पार्श्वचन्द्र एवं राजकोट से प्रकाशित आचाराङ्ग सूत्र (मूल एवं भाषान्तर) में यह पाठ उपलब्ध होता है" एयप्पगाराणि परिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेजा एयप्पगाराणि पसिणाणि नो पुच्छेज्जा ।" इन उभय पाठों में केवल शब्दों के हेर-फेर हैं, परन्तु इनके अर्थ में कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता है।
प्रस्तुत सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि उस युग में हाथी-घोड़े का अधिक उपयोग होता था और उन्हीं के आधार पर गांव के वैभव का अनुमान लगाया जाता था। इस कारण प्रश्नों की पंक्ति में सबसे पहले उनका उल्लेख किया गया है।
कुछ हस्तलिखित प्रतियों में 'त्तिबेमि' पद भी मिलता है, जिसकी व्याख्या पूर्ववत् समझें ।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥