Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध . हुआ धोवन(पानी)। २-तिलों का धोया हुआ पानी, ३-चावलों का धोया हुआ पानी, ४-जिस पानी में उष्ण पदार्थ-शाक आदि ठंडे किए गए हों, वह पानी, ५-तुषों का धोया हुआ पानी, ६-यवों का धोया हुआ पानी, ७-उबले हुए चावलों का निकाला हुआ पानी, ८-कांजी के बर्तनों का धोया हुआ पानी, ९-उष्णगर्म पानी। इसके आगे 'तहप्पगारं' शब्द से यह सूचित किया गया है कि इस तरह के शस्त्र से जिस पानी का वर्ण, गन्ध, रस बदल गया हो वह पानी भी साधु ग्रहण कर सकता है। जैसे- द्राक्षा का पानी, राख से मांजे हुए बर्तनों का धोया हुआ पानी आदि भी प्रासुक एवं ग्राह्य है।
इससे स्पष्ट हो गया कि साधु शस्त्र परिणत प्रासुक जल ग्रहण कर सकता है। यदि निर्दोष बर्तन आदि का धोया हुआ या गर्म पानी प्राप्त होता हो तो साधु उसे स्वीकार कर सकता है। इसी विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा० से जं पुण पाणगं जाणिज्जा-अणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणए उद्धटु २ निक्खित्ते सिया, असंजए भिक्खुपडियाए उदउल्लेण वा ससिणिद्धेण वा सकसाएण वा मत्तेण वा सीओदगेण वा संभोइत्ता आह? दलइजा, तहप्पगारं पाणगजायं अफासुयं एयं खलु सामग्गियं त्तिबेमि॥४२॥
छाया-स भिक्षुर्वा अथ यत् पुनः पानकं जानीयात्- अनन्तर्हितायां पृथिव्यां यावत् सन्तानके, उद्धृत्य २ निक्षिप्तं स्यात्, असंयतः भिक्षुप्रतिज्ञया उदकाइँण वा सस्निग्धेन वा
१ 'उस्सेइमं' और 'संसेइमं'। इन दो पदों की व्याख्या वृत्तिकार एवं अन्य आगम टीकाकार तथा कोषकारों ने इस प्रकार की है
'उस्सेइमं वेति'पिष्टोत्स्वेदनार्थमुदकम्। संसेइमं वेति'तिलधावनोदकं, यदि वारणिकादिसं-स्विन्नधावनोदकम्'
- आचाराङ्गवृत्ति। 'उत्स्वेदेन निवृत्तमुत्स्वेदिमं-येन ब्रीह्यादि पिष्टं सुरायर्थं उत्स्वेद्यते, तथा संसेकेन निवृत्तमति, संसेकिम' अरणिकादि पत्र शाकमुत्काल्य येन शालिजलेन संसिच्यतेतदिति।
- स्थानांग सूत्र, ३,३ वृत्ति (अभयदेव सूरि) उस्सेइमं-(उत्स्वेदिम) आटा से मिश्रित पानी, आटा धोया जल, (कप्प, ठा० ३।३)
-प्राकृत महार्णव पृ० २३८। संसेइम-(संसेकिम) संसेक से बना हुआ। निचू. १५। उबाली हुई भाजी जिस ठण्डे जल से सींची जाए वह पानी। ठा.३।३ पत्र १४ कप्प। तिलका धोवन। आचारांग २।८४। पिष्टोदक आटे का धोवन । दस०५।१७५। उस्सेइम-(उत्स्वेदिम) आटे का धोवन। पृ० ३१३।
संसेइम-तिलादि धान्य के धोवन का पानी, जिसमें पत्र शाक आदि बाफने में आते हैं या. धान्य ओसावन के काम में आता है वह पानी। - अर्धमागधी कोष, ३१३।