Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक ३ या साध्वी को निष्क्रमण और प्रवेश नहीं करना चाहिए तथा वह उपाश्रय धर्मचिन्तन के लिए भी उपयुक्त नहीं है। अतः साधु को उसमें कायोत्सर्गादि क्रियाएं नहीं करनी चाहिएं।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को ऐसे उपाश्रय में नहीं ठहरना चाहिए जिसमें गृहस्थों का, विशेष करके साधुओं के स्थान में बहनों का एवं साध्वियों के स्थान में पुरुषों का आवागमन रहता हो और जिन स्थानों में अग्नि एवं पानी रहता हो । क्योंकि इन सब कारणों से साधु के मन में विकृति आ सकती है। इसलिए साधु को इन सब बातों से रहित स्थान में ठहरना चाहिए।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा० से जं. गाहावइकुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं पंथए पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव चिंताए, तह. उ० नो ठा०॥१२॥
- छाया- स भिक्षुर्वा स यत् गृहपतिकुलस्य मध्यमध्येन गन्तुं पंथाः प्रतिबद्धं वा नो प्राज्ञस्य यावच्चितया तथाप्रकारे उपाश्रये न स्था।
पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी। से जं-वह जो फिर उपाश्रय को जाने, जिस उपाश्रय का मार्ग। गाहावइकुलस्स-गृहपति के घर के।मझमझेणं-मध्य में होकर। गंतुं-जाने का। पंथएमार्ग है। वा-अथवा। पडिबद्धं-प्रतिबद्ध है अर्थात् उसके अनेक द्वार हैं तथा वहां पर स्त्री आदि विशेष रूप से आती-बैठती हैं तो। पन्नस्स-प्रज्ञावान साधु को। जाव चिंताए-यावत् पांच प्रकार का स्वाध्याय करना। नो-नहीं कल्पता है और। तहप्पगारे-तथाप्रकार के। उ०-उपाश्रय में। नो ठाणं-स्थानादि कायोत्सर्गादि करना योग्य नहीं
मूलार्थ-जिस उपाश्रय में जाने के लिए गृहपति के कुल से-गृहस्थ के घर से होकर जाना पड़ता हो, और जिसके अनेक द्वार हों ऐसे उपाश्रय में बुद्धिमान साधु को स्वाध्याय और कायोत्सर्ग-ध्यान नहीं करना चाहिए अर्थात् ऐसे उपाश्रय में वह न ठहरे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि जिस उपाश्रय में जाने का मार्ग गृहस्थ के घर में से होकर जाता हो तो साधु को ऐसे स्थान में नहीं ठहरना चाहिए। क्योंकि,बार-बार गृहस्थ के घर में से आते-जाते स्त्रियों को देखकर साधु के मन में विकार जागृत हो सकता है तथा साधु के बार-बार आवागमन करने से गृहस्थ के कार्य में भी विघ्न पड़ सकता है या बहिनों के मन में संकोच या अन्य भावना उत्पन्न हो सकती है। इसी कारण आगम में ऐसे स्थानों में ठहरने का निषेध किया गया है, परन्तु साध्वियों के लिए ऐसे स्थान में ठहरने का निषेध नहीं किया गया है।
१ इस संबन्ध में विशेष जानकारी करने की जिज्ञासा रखने वाले पाठकों को बृहत्कल्प सूत्र का १, २ उद्देशक और निशीथ सूत्र का ८वां उद्देशक देखना चाहिए।
२ नो कप्पइ निग्गंथाणं गाहावइकुलस्स मज्झंमज्झेणंठातुं वत्थए। कप्पइ निग्गंथीणं गाहावइकुलस्स मज्झमझेणं गंतु वत्थए। - बृहत्कल्प सूत्र, १, ३३, ३४।