Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ८
१०३ मिलने पर अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे।
गृहपति के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी अबद्धास्थि फल-कोमल फल को जाने, जैसे कि-आम्र वृक्ष का कोमल फल, कपित्थ का कोमल फल, अनार का कोमल फल और बिल्व का कोमल फल तथा इसी प्रकार का अन्य कोमल फल जो कि कच्चा और शस्त्र परिणत नहीं, मिलने पर भी अप्रासुक जान कर साधु को उसे परिग्रहण न करना चाहिए।
गृहस्थी के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी मन्थु के सम्बंध में जानकारी करे जैसे- उदुम्बर मन्थु-चूर्ण, न्यग्रोधमन्थु, प्लक्षमंथु, अश्वत्थमन्थु, तथा इसी प्रकार का अन्य मन्थुजात जो कि कच्चा और थोड़ा पीसा हुआ तथा सबीज अर्थात् जिसका कारण-योनि बीज विध्वस्त नहीं हुआ ऐसे चूर्ण जात को मिलने पर भी अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे।
___ हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को अपक्व कन्द-मूल, वनस्पति एवं फल आदि नहीं लेने चाहिएं। यदि कच्ची सब्जी शस्त्रपरिणत हो गई है तो वह ग्राह्य है, परन्तु, जब तक वह शस्त्रपरिणत नहीं हुई है, तब तक सचित्त है; अतः साधु के लिए अग्राह्य है।
'विरालियं' का अर्थ है- जमीन में उत्पन्न होने वाला कन्द विशेष। 'पलम्ब जायं' का तात्पर्य फल से है। अबद्धा अस्थि फलं' का तात्पर्य है-वह फल जिस में अभी तक गुठली नहीं बन्धी है, ऐसे सुकोमल फल को 'सरडुय',कहते हैं 'मन्थु' का अर्थ चूर्ण होता है और 'साणुवीयं' का तात्पर्य है- वह बीज जिसकी योनि का अभी नाश नहीं हुआ है। 'झिज्झरी' शब्द लता विशेष का बोधक है। इस पाठ का तात्पर्य यह है कि साधु को सचित्त वनस्पति को ग्रहण नहीं करना चाहिए। - पुनः आहार के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा० से जं पुण. आमडागं वा पूपिन्नागं वा महुं वा मजं वा सप्पिं वा खोलं वा पुराणगं वा इत्थ पाणा अणुप्पसूयाइं जायाई संवुड्ढाइं अव्वुक्कंताइंअपरिणया इत्थ पाणा अविद्धत्था नो पडिगाहिज्जा॥४६॥
...' छाया- स भिक्षुर्वा स यत् पुनः आमपत्रकं वा पूतिसिण्याकं वा मधु वा मद्यं वा सर्पिर्वा खोलं वा पुराणकं वा अत्र प्राणाः अनुप्रसूता जाता संवृद्धाः अव्युत्क्रान्ताः अपरिणताः अत्र प्राणाः (प्राणिनः) अविध्वस्ताः नो प्रतिगृण्हीयात्।
पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा०-साधु अथवा साध्वी।से जं पुण-गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ यदि इस प्रकार जाने कि।आमडागं वा-अर्द्धपक्व शाक अथवा। पूइपिन्नागं-सड़ी हुई खल अथवा। महुं वा-मधु। मजं वा-मद्य। सप्पिं वा-घृत। खोलं वा-अथवा खोल-मद्य के नीचे का कर्दम-कीच। पुराणगं वा-ये पुराने पदार्थ। इत्थ-इनमें। पाणा-प्राणी-जीव।अणुप्पसूयाइं-उत्पन्न होते हैं। जायाइं-प्राणियों का जन्म होता है। संवुड्ढाइं-वृद्धि को प्राप्त होते हैं। अव्बुक्कंताई-व्युत्क्रान्त नहीं होते हैं तथा।अपरिणया-परिणत नहीं होते हैं। इत्थ-इनमें। पाणा-प्राणी।अविद्धत्था-विध्वंस को प्राप्त नहीं हुए हैं, तो उसके मिलने पर भी।नो पडिगाहिज्जाग्रहण न करे।
. मूलार्थ-गृहपति कुल में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी अर्द्धपक्व शाक, सड़ी हुई खल,