Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक८
१०७ में उत्पन्न होते हैं अन्य स्थानों पर नहीं, अतः इनको अग्रजातादि कहते हैं। णं-यह वाक्यालंकार में है। तक्कलिमत्थए-कन्दली के मध्य का गर्भ तथा । तक्कलिसीसे-कन्दली स्तबक।णालिएरमत्थए-अथवा नारियल का मध्य गर्भ। खजूरमत्थए-खजूर का मध्य गर्भ अथवा। तालमत्थए-ताल का मध्य गर्भ, तथा। अन्नयरं वाअन्य। तहप्पगारं-इसी प्रकार का।आमं०-कच्चा और जिसको शस्त्र परिणत नहीं हुआ, मिलने पर अप्रासुक जान कर ग्रहण न करे।
से-वह। भिक्खू वा २-साधु अथवा साध्वी गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर।से जं०-इस प्रकार जाने, यथा। उच्छु वा-इक्षु और इक्षु के समान अन्य वनस्पति को तथा। काणं वा-व्याधि विशेष से सछिद्र हुई वनस्पति को। अंगारियं वा-अथवा ऋतु विशेष से जिसका वर्ण और हो गया हो। संमिस्सं-वह वनस्पति जिसकी त्वचा फटी हुई हो। विगदूमियं-वृक या श्याल भक्षित अर्थात् जिसे वृक या शृगाल आदि ने खाया हुआ हो। वित्तग्गगं वा-वेतस-बैंत का अग्र भाग अथवा।कंदलीऊसुगं-कन्दली का मध्य भाग तथा।अन्नयरं वा-अन्य। तहप्पगारंइसी प्रकार की कच्ची और अशस्त्र परिणत वनस्पति, मिलने पर अप्रासुक जानकर साधु उसे ग्रहण न करे।
से-वह। भिक्खू वा०-साधु अथवा साध्वी गृहपति कुल मे प्रवेश करने पर। से जं पुण०-फिर इस प्रकार जाने, यथा। लसुणं वा-लशुन को। लसुणपत्तं वा-लशुन के पत्र को। लसुणनालं वा-लशुन की नाल को अथवा। लसुणकंदं वा-लशुन कन्द को। लसुणचोयगं वा-लशुन के ऊपर की छाल-छिलका, तथा। अन्नयरं वा-अन्य। तहप्पगारं-इसी प्रकार की कच्ची और अशस्त्र परिणत वनस्पति, मिलने पर अप्रासुक जान कर उसे ग्रहण न करे। . : से-वह। भिक्खू वा-साधु या साध्वी गृहपति के कुल में प्रविष्ट होने पर। से जं.-फिर इस प्रकार जाने यथा। अंच्छियं वा-आस्तिक नाम के वृक्ष विशेष का फल, तथा। कुंभिपक्कं-गर्त आदि में धूएं आदि से पकाया हुआ। तिंदुगं वा-तिन्दुग वृक्ष के फल। वेलुगं वा-अथवा बिल्व वृक्ष का फल। कासवनालियं वाश्रीपर्णिफल तथा।अन्नयरं वा-अन्य कोई। तहप्पगारं-इसी प्रकार का।आमं-कच्चा ।असत्थप०-अशस्त्रपरिणत फल विशेष मिलने पर अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे।
से-वह। भिक्खू वा०-साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर। से जं.- यदि इस प्रकार जाने जैसे कि। कणं वा-शाल्यादि के कण । कणकुंडगं वा-कणों आदि से मिश्रित छानस। कणपूयलियं वाकणों से मिश्रित रोटी अर्थात् मन्दपक्वरोटिका। चाउलं वा-अथवा चावल। चाउलपिढें वा-अथवा चावलों का पिष्ट-आटा। तिलं वा-तिल। तिलपिठं वा-अथवा तिल पिष्ट-(तिलकुट ) तथा। तिलपप्पडगं वा-तिल पर्पटिका-तिल पापड़ी तथा। अन्नयरं वा-अन्य कोई । तहप्पगारं-इसी प्रकार का। आमं-कच्चा। असत्थप०अशस्त्र परिणत पदार्थ विशेष लाभे संते-मिलने पर। नो प०-ग्रहण न करे। एवं-इस प्रकार। खलु-निश्चय ही। तस्स-उस। भिक्खुस्स-भिक्षु का।सामग्गियं-समग्र भिक्षुभाव अर्थात् सम्पूर्ण आचार है।
मूलार्थ-गृहपतिकुल में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी अग्रबीज, मूलबीज, स्कन्धबीज, तथा पर्वबीज, एवं अग्रजात, मूलजात, स्कन्धजात, पर्वजात, इनमें इतना विशेष है कि ये उक्त स्थानों से अन्यत्र उत्पन्न नहीं होते, तथा कन्दली के मध्य का गर्भ, कन्दली का स्तबक, नारियल का मध्यगर्भ, खजूर का मध्यगर्भ और ताड़ का मध्यगर्भ तथा इसी प्रकार की अन्य कोई कच्ची और अशस्त्रपरिणत वनस्पति, मिलने पर अप्रासुक जान कर ग्रहण न करे।