Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
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किसी विशिष्ट महार्घ पात्र में । अह - अथ । पुण-फिर। एवं इस प्रकार । जाणिज्जा - जाने जैसे कि । असंसट्ठे हत्थे-सचित्त व अचित पदार्थ से हाथ लिप्त नहीं हैं किन्तु । संसट्टे मत्ते-भाजन लिप्त है तथा । संसट्ठे वा हत्थे - हाथ लिप्त हैं और। असंसठ्ठे मत्ते-भाजन पात्र लिप्त नहीं हैं । य-फिर से वह भिक्षु साधु । पडिग्गहधारी सिया-पात्रों के धारण करने से स्थविरकल्पी हो । वा अथवा । पाणिपडिग्गहिए-हाथ ही जिसका पात्र है ऐसा जिनकल्पी हो । से पुव्वामेव- वह पहले ही । आलोइज्जा - देखे - विचारे और कहे । आउसोत्ति वा - हे आयुष्मन् ! गृहस्थ अथवा भगिनि ! तुमं एएणं- तुम इस । । असंसट्ठेण हत्थेण असंसृष्ट- अलिप्त हाथ से । संसट्ठेण मत्तेण-और लिप्त भाजन से । वा अथवा । संसट्ठेण हत्थेण - लिप्त हाथ से । असंसट्ठेण मत्तेण - और अलिप्त भाजन से । अस्सिं पडिग्गहंसि - इस हमारे पात्र में । वा-अथवा । पाणिंसि वा- हमारे हाथ में। निहट्टु-लाकर । उचित्तु दलयाहि-हमें दे दो । तहप्पगारं तथा प्रकार के अर्थात् ऐसे । भोयणजायं भोजन को । सयं वा स्वयं । जाइज्जा-याचना करे। वा अथवा । परो वा से दिज्जा - गृहस्थ स्वयमेव दे तो । फासूयं उसे प्रासुक जानकर । पाडिगाहेज्जा - ग्रहण कर ले। तझ्या पिंडेसणा - यह तीसरी पिंडैषणा है। अहावरा - अब इसके अनन्तरं । चउत्था पिंडेसणा-चौथी पिंडैषणा कहते हैं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा- वह साधु अथवा साध्वी । से जं०- गृहपति कुल में प्रवेश करने पर इस प्रकार जाने यथा । पिहुखं वा अग्नि से परिपक्व तुष रहित शाल्यादि। जाव-यावत्। चाउलपलंबं वा-तुष-रहित चावल । खलु वाक्यालंकार में है। अस्सिं पडिग्गहंसि-हमारे इस पात्र में । अप्पे पच्छाकम्मे-जहां पश्चात् कर्म नहीं तथा। अप्पे पज्जवजाए - तुषादि रहित है। तहप्पगारं तथाप्रकार के । पिहूयं वा - अचित्त शाल्यादि को । जाव - यावत् । चाउलपलंबं वा-तुष-रहित चावलों को। सयं वा णं जाव पडिοस्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो उसे प्रासुक जानकर स्वीकार कर ले, यह । चउत्था पिंडेसणा - चौथी पिंडैषणा है । अहावरा - अब इसके अनन्तर । पंचमा पिंडेसणा- पांचवीं पिंडैषणा के विषय में कहते हैं यथा । से भिक्खू वा-साधु या साध्वी । उग्गहियमेव भोयणजायं जाणिज्जा खाने के लिए पात्र में रखे हुए भोजन को जाने यथा । सरावंस वा शराब में मिट्टी के सकोरे में। डिंडिमंसि वा- कांसी के बर्तन में अथवा । कोसगंसि वा-कोशक-मिट्टी के बने हुए पात्र विशेष में । अह पुण एवं जाणिज्जा- अथवा फिर इस प्रकार जाने । बहुपरियावन्ने-कि सचित्त जल से हाथ आदि धोए हुए उसे बहुत देर हो गई है जिससे वह अचित्त हो गया है और । पाणिसु दगलेवे-हाथ आदि में लिप्त जल अचित्त हो रहा है। तहप्पगारंर तथा प्रकार के । असणं वा ४अशनादि चार प्रकार के आहार को । सयं वा णं० जाव पडि० - स्वयं याचना करे या गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर स्वीकार कर ले। पंचमा पिंडेसणा-यह पांचवीं पिंडैषणा है। अहावरा - अब अन्य । छट्ठा पिंडेसणाछठी पिंडैषणा के सम्बन्ध में कहते हैं। से भिक्खू वा० - वह साधु अथवा साध्वी गृहस्थ के घर गया हुआ। पग्गहियमेव-भाजन से निकाली गई वस्तु दूसरे ने अभी ग्रहण नहीं की उस समय अभिग्रहधारी भिक्षु । भोयणजायंभोजनादि पदार्थ को जाने। च पुनः फिर । जं- जो वस्तु । सयट्ठाए पग्गहियं अपने लिए बर्तन आदि से निकाल है। जं च-और ज़ो फिर । परट्ठाए पग्गहियं-दूसरे के लिए निकाली है। तं पायपरियावन्नं-वह भोजनादि वस्तु गृहस्थ के पात्र में है अथवा । तं पाणिपरियावन्नं- हाथ में है, तो। फासूयं जाव पडिगाहिज्जा - उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। छट्ठा - यह छठी । पिंडेसणा-पिंडैषणा है। अहावरा - अब इसके बाद। सत्तमा पिंडेसणासातवीं पिंडैषणा के सम्बन्ध में कहते हैं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा- वह साधु अथवा साध्वी गृहपति के घर या हुआ । बहुउज्झियधम्मियं उज्झित धर्म वाले । भोयणजायं भोजनादि पदार्थ को। जाणिज्जा - जाने । जं चऽन्ने-और जिसको फिर अन्य । बहवे बहुत से । दुपय- चउप्पय-समण - माहण - अतिहि-किवण-वणीमगा