Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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- श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध वा विसूचिका वा छर्दी वा उद्बाधेरन्, अन्यतरद् वा दुःखं रोगातंकः समुत्पद्येत असंयतः कारुण्यप्रतिज्ञया तद् भिक्षोः गात्रं तैलेन वा घृतेन वा नवनीतेन वा वसया वा अभ्यज्यात् वा मृक्षयेद् वा स्नानेन वा कलकेन वा लोध्रेण वा वर्णेन वा चूर्णेन वा पद्मन वा आघर्षत् प्रघषेत् उद्वलेत् उद्वर्तेत् वा, शीतोदकविकटेन वा उष्णोदकविकटेन वा उच्छालयेद् वा प्रक्षालयेद् वा स्नपयेद् वा सिञ्चेद् वा, दारुणा वा दारुपरिणामं कृत्वा अग्निकायं उज्वालयेद् वा प्रज्वालयेद् वा उज्वाल्य कायं वा आतापयेत् वा प्रतापयेद् वा अथ भिक्षूणां पूर्वोपदिष्टं यत् तथाप्रकारे सागारिके उपाश्रये नो स्थानं वा ३ चेतयेत्।
पदार्थ-से-वह।भिक्खूवा-साधु अथवा साध्वी।से जं०-उपाश्रय को जाने जैसे कि । सइत्थियंयह उपाश्रय स्त्री युक्त है। सखुड्डं-क्षुद्र पशुओं और बालकों से युक्त है। सपसुभत्तपाणं-पशुओं तथा उनके खाने योग्य अन्न-पानी से युक्त है। तहप्पगारे-तथाप्रकार के।स गारिए-सागारिक-गृहस्थों से युक्त। उवस्सएउपाश्रय में। ठाणं वा-कायोत्सर्गादि । नो चेइजा-न करे।आयाणमेयं-यह कर्म बन्धन का कारण है।भिक्खुस्सभिक्षु को। गाहावइकुलेण संद्धि-यदि गृहपति के कुटुम्ब के साथ। संवसमाणस्स-बसते-निवास करते हुए कदाचित्। अलसके-हाथ-पैर आदि का स्तम्भन हो जाए अथवा उनमें सोजन आ जाए अथवा। विसूइया वाविसूचिका-हैजा हो जाए या। छड्डीवा-वमन। उब्बाहिज्जा-होने लगे। से अन्नयरे वा-अथवा उसे अन्य कोई। दुक्खे-दुःख। रोगायंके-या ज्वरादि रोग अथवा शूल आदि प्राणनाशक रोग। समुप्पज्जेज्जा-उत्पन्न हो जाए तो इस प्रकार के रोग से पीड़ित साधु को देखकर। असंजए-गृहस्थ। कलुणापडियाए-करुणा से। तं-उस। भिक्खुस्स-भिक्षु के। गायं-शरीर को। तेल्लेण वा-तेल से। घएण वा-घृत से। नवणीएण वा-नवनीतमक्खन से अथवा। वसाए वा-चर्बी से। अब्भंगेज वा-उसके शरीर का एक बार मालिश करेगा अथवा। मक्खिज वा-अनेक बार मालिश करेगा तथा। सिणाणेण वा-सुगन्धित द्रव्य मिश्रित जल से स्नान कराएगा या। कक्केण-कषाय द्रव्य से मिश्रित जल से। लोद्धेण वा-लोद से। वन्नेण वा-कम्पिल्लकादि वर्ण से। चुण्णेण वा-जवादि केचूर्ण से। पउमेण वा-पद्म से।आघंसिज्ज वा-उसके शरीर का थोड़ा सा घर्षण करेगा।पघंसिज्ज वा-बार बार घर्षण करेगा। उव्वलिज्ज वा-उक्त पदार्थों को मसल कर शरीर की स्निग्धता को दूर करेगा। उव्वट्टिज वा-उबटन करेगा तथा।सीओदगवियडेण वा-उसे प्रासुक शीतल जल से। उसिणोदगवियडेण वा-या उष्ण जल से। उच्छोलेज वा-एक बार धोएगा या। पक्खलिज वा-अनेक बार प्रक्षालन करेगा। सिणाविज वा-बार-बार मस्तक को धोएगा। सिंचेज वा-जल के द्वारा गात्र-शरीर का सिंचन करे अथवा। दारुणा वा दारुपरिणामं कटु-अरणी के काष्ठ को घर्षण करके। अगणिकायं-अग्नि को। उज्जालेज वा-उज्वलित करेगा। पज्जालिज वा-प्रज्वलित करेगा और। उज्जलित्ता-उज्वलित वा प्रज्वलित करके। कायंसाधु के शरीर को। आयाविज्जा-एक बार तपाएगा। पयाविज वा-या बार-बार तपाएगा। अह-इसलिए। भिक्खूणं-भिक्षुओं को। पुव्वोवइट्ठा-तीर्थंकरादि ने पहले ही आदेश किया है कि। जं-जो कि। तहप्पगारेतथा प्रकार के। सागारिए-सागारिक-गृहस्थादि से युक्त। उवस्सए-उपाश्रय हैं, उनमें। ठाणं वा-स्थानादि। नो चेइज्जा-न करे, अर्थात् ऐसे स्थान में न ठहरे।
मूलार्थ-जो उपाश्रय स्त्री, बालक और पशु तथा उनके खाने योग्य पदार्थों से युक्त है तो इस प्रकार के गृहस्थादि से युक्त उपाश्रय में साधु-साध्वी न ठहरे। क्योंकि यह कर्म आने का