Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२१५
२३४
२३५
भुंग
२३६
प्रथम अध्ययन, उद्देशक १०
१३३ वत्स, कीट, इन्द्र
कुटज-कोरडसक मर्कटी, वायसी
करंजुआ (मीचका)
२१६ मर्कटी
कौंचबीज
२१७ गोलोमी
श्वेतदूर्वा-सफेद दूब
२२५ मत्स्याक्षी :
गांठदूब
२२५ मृगाक्षी
इन्द्रायण (तुम्मा)
२२९-२३० गान्धारी
जवासा
२३१ शिखरी मयूरक, मर्कटी
अपामार्ग (पुठकंडा)
२३२ भिक्षु
तालमखाणा
२३३ कुमारी, कन्या
घीकुआर गोपी, गोपा, कन्या]
काला बांसा गोपवधू, कृशोदरी]
भंगरा वायसी, काका
मकोच
२३७ काकनासा
कोआटूण्टी
२३८ काकजंघा
एक वनस्पति
२३८ मेष शृङ्गी
मेढासिंगी • मत्स्याक्षी
मछोछी
२४१ मत्स्यादनी.
जल पिप्पली गो जिव्हा
गोभी (गाउज़बां)
२४७ नाम्र चूड़
ककरौंदा
२४७ व्याल, चित्रक
चित्रक-वनस्पति मयूर
अजवैण
१५० धेनुका
धनिया
१५२ मत्स्यपित्ता, मत्स्य शकला
कुटकी
११६ चन्द्र
कबीला
१६० रामसेवक
चिरायता
१६२ निशा
हलदी
१६९ गजाख्य
पमाड
१७१ भंग
१७४ चन्द्र
काफूर
१७९ क्या यहां व्युत्पतिलभ्य अर्थ ग्रहण करना उचित होगा ? कदापि नहीं। इसी प्रकार प्रस्तुत प्रकरणों में भी लोक प्रसिद्ध अर्थ का ग्रहण न करके प्रकरण संगत और शास्त्र सम्मत वनस्पति विशेष अर्थ ही उपयुक्त हो सकता है।
२४६
१४९
मातुलानी