Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१०५
प्रथम अध्ययन, उद्देशक ८ आहार के विषय में और बातों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं।
मूलम्- से भिक्खू वा से जं. उच्छुमेरगं वा अंककरेलुगं वा कसेरुगं वा सिंघाडगं वा पूइआलुगं वा अन्नयरं वा । से भिक्खू वा० से जं. उप्पलं वा उप्पलनालं वा भिसंवा भिसमुणालं वा पुक्खलं वा पुक्खलविभंगंवा अन्नयरं वा तहप्पगारं०॥४७॥
छाया- स भिक्षुर्वा स यत् इक्षुमेरकं वा अंककरेलुकंकसेरुकं वा शृंगाटकं वा पूतिआलुकं वा अन्यतरद् वा. (तथाप्रकारं )।
स भिक्षुर्वा स यत् उत्पलं वा उत्पलनालं वा बिसं वा बिसमृणालं वा पुष्करं वा पुष्करविभंगं वा अन्यतरद्वा तथाप्रकारं।
पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी। से जं०-फिर इस प्रकार जाने यथा। उच्छुमेरगं वा-इक्षुखण्ड-गंडेरी। अंककरेलुगं वा-अंक करेलु नामक वनस्पति। कसेरुगं वा-कसेरु। सिंघाडगं वासिंघाडे। पूइआलुगं वा-पूतिआलुक-वनस्पति विशेष। अन्नयरं वा-तथा इसी प्रकार की अन्य वनस्पति जो कच्ची-शस्त्र परिणत न हो, तो उसे अप्रासुक जान कर साधु ग्रहण न करे।
से-वह। भिक्खू वा-साधु या साध्वी गृहस्थ के घर जाने पर। से जं. पुण-फिर इस प्रकार जाने यथा। उप्पलं वा-उत्पल कमल। उप्पलनालं वा-उत्पल कमल की नाल। भिसं वा-कमल का कन्द मूल। भिसमुणालं वा। कमल के कन्द के ऊपर की लता। पुक्खलं वा-कमल की केसर। पुक्खलविभंगं वाकमल का कन्द । अन्नयरं वा०-तथा अन्य। तहप्पगारं-इसी प्रकार का कन्द आदि जो कच्चा और अशस्त्र परिणत हो तो उसे साधु मिलने पर भी अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे।
मलार्थ-गृहपति कुल मे प्रवेश करने पर साध या साध्वी इस प्रकार से जाने, यथाइक्षुखंड-गंडेरी, अंककरेलु नामक वनस्पति, कसेरु, सिंघाडा और पूति आलुक तथा अन्य इसी प्रकार की वनस्पति विशेष जो शस्त्र परिणत नहीं हुई, उसे मिलने पर भी अप्रासुक जान कर साधु ग्रहण न करे।
गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी यदि यह जान ले कि उत्पल-कमल, उत्पलकमल की नाल, उसका कन्द-मूल, उस कन्द के ऊपर की लता, कमल की केसर और पद्म कन्द तथा इसी प्रकार का अन्य कन्द कोई कच्चा हो, जिसको शस्त्र परिणत नहीं हुआ हो तो साधु मिलने पर भी उसे अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को इक्षुखंड, कसेरु, सिंघाड़ा, उत्पल(कमल), उत्पल-नाल(कमल की डंडी), भृणाल(कमल के नीचे का कन्द) आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये सचित्त होते हैं, अतः जब तक शस्त्रपरिणत न हों तब तक साधु के लिए अग्राह्य
. इस विषय में और पदार्थों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं