Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ४ प्रकार से कह गए हैं। समाणा वा-जंघा आदि का बल क्षीण होने से एक ही क्षेत्र में स्थिरवास करते हुए रहते हैं अथवा। वसमाणा वा-मास कल्पादि विहार करते हुए। गामाणुगाम-ग्रामानुग्राम। दूइज्जमाणा-विचरते हुए जब उस क्षेत्र में आये तो उनके प्रति स्थिरवास रहने वाले साधु कहते हैं कि हे भिक्षुओ ! खलु-निश्चय ही। अयं गामे-यह ग्राम।खुड्डाए-छोटा है और।संनिरुद्धाए-कितने एक घर संनिरुद्ध हैं अर्थात् भिक्षार्थ जाने के योग्य नहीं है। नो महालए-यह ग्राम बड़ा नहीं है। से-वह साधु कहने लगा। हंता-सामान्य खेद सूचन के अर्थ में है। भयंतारो-पूज्य मुनिवरो ! हे आप। बाहरिगाणि-बाहर के। गामाणि-ग्रामों में। भिक्खायरियाए-भिक्षा के निमित्त। वयह-जाओ। तत्थेगइयस्स-उस ग्राम में रहने वाले कई एक।भिक्खुस्स-भिक्षुके।संति-हैं। पुरेसंथुयाभाई-भतीजे आदि सगे सम्बन्धी अथवा। पच्छासंथुया वा-श्वसुर कुल के सम्बन्धी लोग। परिवसंति-बसते हैं। तंजहा-जैसे कि। गाहावई वा-गृहपति अथवा। गाहावइणीओ वा-गृहपत्नी अथवा। गाहावइपुत्ता वागृहपति के पुत्र अथवा। गाहावइधूयाओ वा-गृहपति की पुत्रिये अथवा। गाहावइसुण्हाओ वा-गृहपति की स्नुषा-पुत्र वधुयें अथवा। धाईओ वा- धाय मातायें अर्थात् दूध पिलाने वाली मातायें अथवा। दासा वा-दास अथवा। दासीओ वा-दासियें अथवा। कम्मकरा वा-काम करने वाले अथवा। कम्मकरीओ वा-काम करने वाली। तहप्पगाराइं-तथा प्रकार के। कुलाइं-कुल जो कि। पुरेसंथुयाणि वा-पूर्व परिचय वाले अथवा। पच्छासंथुयाणि वा-पश्चात् परिचय वाले। संति-हैं। पुव्वामेव-उन कुलों में पहले ही। भिक्खायरियाएभिक्षा के लिए। अणुपविसिस्सामि-मैं प्रवेश करूंगा। अविय-अथवा। इत्थ-इन कुलों में। लभिस्सामिइच्छानुकूल प्राप्त करूंगा। पिंडं वा-शाल्यादि पिण्ड।लोयं वा-अथवा लवण रस युक्त आहार। खीरं वा-अथवा दूध। दहिं वा-अथवा दधि-दही। नवणीयं वा-नवनीत मक्खन अथवा। घयं वा-घृत। गुलं वा-अथवा गुड़। तिल्लं वा-तेल। महुं वा-मधु। मजं वा-अथवा मद्य। मंसं वा-मांस। सक्कुलिं वा-अथवा जलेबी जैसी मिठाई अथवा। फाणियं वा-जल से मिश्रित गुड़ अथवा। पूयं वा-अपूप-पूड़ा आदि। सिहिरिणिं वा-शिखरणी इस नाम से प्रसिद्ध मिठाई। तं पुवामेव-उस आहार को प्रथम ही लाकर। भुच्चा-खाकर। पिच्चा-पीकर। चऔर। पडिग्गह-पात्र को। संलिहिय-निर्लेप कर तथा। संपमज्जिय-संमार्जित कर। तओ-तदनन्तर। पच्छापश्चात्। भिक्खूहि-भिक्षुओं के। सद्धिं-साथ। गाहा०-गृहपतियों के कुलों में भिक्षा के लिए। पविसिस्सामि वा-प्रवेश करूंगा अथवा। निक्खमिस्सामि वा-निकलूंगा। माइट्ठाणं संफासे-यदि उक्त प्रकार से करे तो उसे मातृस्थान छल-कपट का स्पर्श होगा। तं-अतः साधु। एवं-इस प्रकार नो-न। करिज्जा-करे। से-वह-भिक्षु। तत्थ-उस ग्रामादिक में। भिक्खूहि-भिक्षुओं के।सद्धिं-साथ अर्थात् अतिथि आदि के साथ। कालेण-भिक्षा के समय में। अणुपविसित्ता-गृहपति कुलों में प्रवेश करके। तत्थियरेयरेहिं-वहां उच्चावच। कुलेहि-कुलों से। सामुदाणियं-भिक्षा पिंड। एसियं उद्गमादि-दोष रहित। वेसियं-साधु के वेष से प्राप्त। पिंडवायं-पिंडपातआहारादि को। पडिग्गाहित्ता-अतिथि साधुओं के साथ ग्रहण करके। आहारं आहारिजा-आहार को भक्षण करे। एयं-यह। खलु-निश्चय ही। तस्स-उस। भिक्खुस्स वा-भिक्षु-साधु अथवा। भिक्खुणीए वा-साध्वी का। सामग्गियं-सामग्र्य-भिक्षु भाव है अर्थात् यह उसका संपूर्ण आचार है। .. ' मूलार्थ- कई एक भिक्षु जंघादि के बल रहित होने से अर्थात् विहार में असमर्थ होने से