Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुव्वपविट्ठं पेहाए नो ते उवाइक्कम्म पविसिज्ज वा ओभासिज्ज वा ते तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा २ अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा, अह पुणेवं जाणिज्जा - पडिसेहिए वा दिन्ने वा तओ तंमि नियत्तिए संजयामेव पविसिज्ज वा ओभासिज्ज वा एवं सामग्गियं० त्तिबेमि ॥३०॥
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छाया - स भिक्षुर्वा तद् यत् पुनः जानीयात् - श्रमणं वा ब्राह्मणं वा ग्राम पिंडोलकं वा अतिथिं वा पूर्वप्रविष्टं प्रेक्ष्य न तान् उपातिक्रम्य प्रविशेद् वा अवभाषेद् वा स तमादाय एकान्तमपक्रामेत् २ अनापातासंलोके तिष्ठेत् अथ पुनरेवं जानीयात्- प्रतिषिद्धे वा दत्ते वा ततस्तस्मिन् निवृत्ते संयतमेव प्रविशेद् वा अवभाषेद् वा एतत् सामग्र्यम्, इति ब्रवीमि ।
पदार्थ - से- वह । भिक्खू वा० - साधु अथवा साध्वी । से जं पुण जाणिज्जा- जो इस प्रकार जाने । समणं वा शाक्यादि भिक्षु । माहणं वा अथवा ब्राह्मण गामपिंडोलगं वा ग्राम के भिखारी । अतिहिं वाअथवा अतिथि को । पुव्वपविट्ठं वा- पहले प्रवेश किए हुए को। ते उनको। उवाइक्कम्म- अतिक्रम करके। नो पविसिज्ज वा न तो प्रवेश करे और न ही । ओभासिज्ज वा गृहस्थ से मांगे, परन्तु । से वह भिक्षु । तमायायउन्हें प्रविष्ट हुए जानकर। एगंतमवक्कमिज्जा - एकान्त स्थान में चला जाए, वहां जाकर। अणावायमसंलोए-. जहां पर कोई आता-जाता न हो और न देखता हो वहां । चिट्ठेज्जा - - खड़ा रहे। अह पुणेवं जाणिजा - जब फ यह जान ले कि । पडिसेहिए वा गृहस्थ ने उन्हे प्रतिषेध कर दिया है अर्थात् बिना अन्न दिए घर से हटा दिया है अथवा दिने वा अन्न दे दिया है। तओ-तदनन्तर । तम्मि नियत्तिए उन भिक्षुओं के घर से चले जाने पर । संजयामेव-संयत-साधु । पविसिज्ज वा घर में प्रवेश करे अथवा । ओभासिज्ज वा याचना करे-दाता से मांगे। ए - यह निश्चय ही साधु अथवा साध्वी का । सामग्गियं समग्र सम्पूर्ण साधुत्व- आचार है । त्तिबेमि ऐसा मैं कहता हूं।
मूलार्थ - साधु या साध्वी भिक्षा के निमित्त ग्रामादि में जाते हुए गृहपति के घर में प्रवेश करने पर यदि यह जाने कि यहां पर शाक्यादि भिक्षु, ब्राह्मण, ग्राम याचक और अतिथि लोग प्रवेश किए हुए हैं, तो वह उनको लांघ कर गृहपति कुल में न तो प्रवेश करे और न गृहस्थ से आहारादि की याचना करे। परन्तु उनको देखकर एकान्त स्थान में- जहां कोई आता-जाता न हो। वहां पर जाकर ठहर जाए, जब वह यह जान ले कि गृहस्थ ने भिक्षा देकर या बिना दिए ही उनको घर से निकाल दिया है, तो उनके चले जाने पर वह साधु या साध्वी उसके घर में प्रवेश करे और आहार आदि की याचना करे। यही साधु या साध्वी का सम्पूर्ण आचार है। ऐसा मैं कहता हूँ ।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि यदि किसी गृहस्थ के द्वार पर पहले से ही शाक्यादि मत के भिक्षु खड़े हैं, तो मुनि उन्हें उल्लंघ कर गृहस्थ के घर में प्रवेश न करे और न आहार आदि पदार्थों की याचना करे । उस समय वह एकान्त में ऐसे स्थान पर जाकर खड़ा हो जाए, जहां पर गृहस्थादि की दृष्टि न पड़े। और जब वे अन्य मत के भिक्षु भिक्षा लेकर वहां से हट जाएं या गृहस्थ उन्हें