Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन पिण्डैषणा षष्ठ उद्देशक
पञ्चम उद्देशक में अन्य मत के भिक्षुओं को लांघ कर जाने का निषेध किया गया है। अब प्रस्तुत उद्देशक में अन्य प्राणियों की वृत्ति में अन्तराय डालने का निषेध करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम् - से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा - रसेसिणो- बहवे. पाणा घासेसणाए संथडे संनिवइए पेहाए, तंजहा - कुक्कुडजाइयं वा सूयरजाइयं वा अग्गपिंडंसि वा वायसा संथडा संनिवइया पेहाए सइ परक्कमे संजयामेव नो उज्जुयं गच्छिज्जा ॥३१॥
छाया - स भिक्षुर्वा तद् यत् पुनः जानीयात् - रसैषिणः बहवः प्राणाः- प्राणिनः ग्रासार्थं संस्कृतान् ( संस्तृतान् ) संनिपतितान् प्रेक्ष्य-तद्यथा- कुक्कुटजातिकं वा शूकरजातिकं वा अग्रपिंडे वा वायसान् संस्कृतान् ( संस्तृतान् ) संनिपतितान् प्रेक्ष्य स्रति पराक्रमे संयतः न ऋजुकं गच्छेत् ।
पदार्थ - से- वह । भिक्खू वा ४- साधु अथवा साध्वी । से जं पुण जाणिज्जा- जो फिर मार्ग आदि को जाने कि मार्ग में । बहवे बहुत से । पाणा - प्राणी-जीव जन्तु । रसेसिणो-रस की गवेषणा करने वाले । घासेसणाए - आहार के लिए। संथडे - एकत्रित हो रहे हैं । संनिवइए-मार्ग में बैठे हुए हैं, उनको । पेहाए देख
| तंज- जैसे कि । कुक्कुडजाइयं वा कुक्कुड़ की जाति के जीव अथवा सूयरजाइयं वा- सूअर की जाति के। वा-अथवा। अग्गपिंडंसि - अग्रपिंड आहार को खाने के लिए। वायसा - कौवे । संथडा - एकत्रित हो रहे हैं या। संनिवइया-मार्ग में बैठे हुए हैं, तो इन सबको। पेहाए-देखकर। सइ परक्कमे - मार्गान्तर अन्य मार्ग के होने पर। संजयामेव-संयत-साधु । उज्जुयं- सरल मार्ग से अर्थात् उन जीवों के सन्मुख होकर। नों गच्छिज्जा
न जाए।
मूलार्थ - साधु या साध्वी मार्ग में जाते हुए यदि यह जान ले कि रस की गवेषणा करने वाले बहुत से प्राणी एकत्रित होकर मार्ग में खड़े हुए हैं- जैसे कि कुक्कुट जाति के जीव, शूकरसूअर जाति के तथा अग्रपिंड के भोजनार्थ मार्ग में एकत्र होकर बैठे हुए कौवे आदि जीव रास्ते में बैठे हैं, तो इनको देखकर साधु या साध्वी अन्य मार्ग के होते हुए उस मार्ग से न जाए।
हिन्दी विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि जिस रास्ते में भोजन की कामना से कुक्कुट