Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध बहुत नीचा होकर।ओहरिय-तिरछा-टेढ़ा होकर।आहटु-उस वस्तु को निकालकर। दलइज्जा-दे तो।तहप्पगारंइस प्रकार के। असणं वा ४-अशनादिक चतुर्विध आहार को। लाभे संते-प्राप्त होने पर भी साधु। नो पडिग्गाहिज्जा-ग्रहण न करे-अर्थात् उक्त प्रकार से लाया गया आहार साधु न ले। .. .
मूलार्थ-साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर यदि यह जाने कि अशनादि चतुर्विध आहार, गृहस्थ के वहां भित्ति पर, स्तम्भ पर, मंचक पर, छत पर, प्रासाद पर, कोठी आदि की छत पर तथा किसी अन्य अंतरिक्षजात अर्थात् ऊंचे स्थान पर रखा हुआ है तो इस प्रकार के ऊंचे स्थान से उतार कर दिया गया अशनादि चतुर्विध आहार, अप्रासुक जानकर साधु ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं कि यह कर्म बन्ध का कारण है जो कि गृहस्थ, साधु को आहार देने के लिए ऊंचे स्थान पर रखे हुए आहार को उतारने के लिए चौकी, फलक, पट्टा, सीढ़ी या ऊखल आदि को लाकर, ऊंचा करके ऊपर चढ़ेगा। यदि ऊपर चढ़ता हुआ वह गृहस्थ फिसल जाए या गिर पड़े तो फिसलते या गिरते हुए उसका हाथ, पांव, भुजा, छाती, उदर, सिर या अन्य कोई शरीर का अवयव टूट जाएगा और उसके गिरने से किसी प्राणी, भूत, जीव और सत्व आदि का अवहनन होगा, उन जीवों को त्रास उत्पन्न होगा, संक्लेश उत्पन्न होगा, संघर्ष होगा, संघट्टा होगा, आतापना या किलामना होगी और स्थान से स्थानान्तर में संक्रमण होगा, अतः इस प्रकार के मालाहृत-ऊंचे स्थान से उतारे गए आहार के प्राप्त होने पर भी साधु उसे ग्रहण न करे।
साधु या साध्वी आहार के निमित्त घर में प्रविष्ट होने पर यदि यह देखे कि अशनादिक चतुर्विध आहार जिसे गृहस्थ मिट्टी की कोठी से अथवा बांस आदि की कोठी से भिक्षु के लिए नीचा होकर, कुब्बा होकर या तिरछा होकर निकालता है, तो वह आहार उपलब्ध होने पर भी साधु स्वीकार न करे।
___ हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि समतल भूमि से बहुत ऊपर या नीचे के स्थान पर आहार आदि रखा हो, वह आहार सीढ़ी या चौकी को लगाकर या उसे ऊंचा करके उस पर चढ़कर वहां से आहार को उतार कर दे या इसी तरह नीचे झुक कर, टेढ़ा होकर नीचे के प्रकोष्ठ में रखे हुए पदार्थों को निकाल कर दे तो उन्हें अप्रासुक अकल्पनीय समझ कर ग्रहण नहीं करना चाहिए। यहां अप्रासुक का अर्थ सचित्त नहीं, परन्तु अकल्पनीय है। उन अचित्त पदार्थों को अकल्पनीय इसलिए कहा गया है कि उक्त विषम स्थान से सीढ़ी, तख्त आदि पर से उतारते समय यदि पैर फिसल जाए या सीढ़ी व तख्त का पाया फिसल जाए तो व्यक्ति गिर सकता है और उससे उसके शरीर में चोट आ सकती है एवं अन्य प्राणियों की भी विराधना हो सकती है। इसी तरह नीचे के प्रकोष्ठ में झुककर निकालने से भी अयतना होने की सम्भावना है, अतः साधु को ऐसे विषम स्थानों पर रखा हुआ आहार-पानी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
___परन्तु, यदि उक्त स्थान पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हों, किसी तरह की अयतना होने की सम्भावना न हो तो ऐसे स्थानों पर स्थित वस्तु कोई यत्नापूर्वक उतार कर दे तो साधु ले सकता है। ‘पीढं वा फलगं वा निस्सेणिं वा आह? उस्सविय दुरूहिज्जा' पाठ से यह सिद्ध होता है कि हिलने-डुलने