Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ७ वाले साधनों पर चढ़कर उन वस्तुओं को उतार कर दे तो साधु को नहीं लेनी चाहिएं, क्योंकि उन पर से फिसलने का डर रहता है। परन्तु, स्थिर सीढ़ियों पर से चढ़कर कोई वस्तु उतार कर लाई जाए या किसी स्थिर रहे हुए तख्त आदि पर चढ़कर उन्हें उतारा जाए तो वे अकल्पनीय नहीं कही जा सकती।
इससे यह स्पष्ट होता है कि जिससे आत्म विराधना, संयम विराधना, गृहस्थ की विराधना एवं जीवों की विराधना हो या गृहस्थ को किसी तरह का कष्ट होता हो तो ऐसे स्थान पर स्थित पदार्थ को ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि किसी भी तरह की विराधना एवं किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचता हो तो उस स्थान पर स्थित वस्तु साधु के लिए ग्राह्य है। वस्तुतः यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि साधु के निमित्त किसी भी प्राणी को कष्ट न हो और आत्मा एवं संयम की विराधना भी न हो।
पृथ्वीकाय पर स्थित आहार के विषय में उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा० से जं• असणं वा० ४ मट्टियाउलित्तं तहप्पगारं असणं वा ४ लाभे संते नो०, केवली. अस्संजए भि० मट्टिओलित्तं असणं वा ४ उब्भिंदमाणे पुढविकायं समारंभिज्जा, तहा आऊ तेऊ वाऊ वणस्सइ तसकायं समारंभिज्जा पुणरवि उल्लिपमाणे पच्छाकम्मं करिज्जा, अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा जाव जं तहप्पगारं मट्टिओलित्तं असणं वा ४ लाभे संते नो।
से भिक्खू जं असणं वा ४ पुढविकायपइट्ठियं तहप्पगारं असणं वा० अफासुयं०। से भिक्खू० ज० असणं वा ४ आउकायपइट्ठियं चेव, एवं अगणिकायपइट्ठियं लाभे केवली०, अस्संजए भि० अगणिं उस्सक्किय निस्सक्किय ओहरिय आहटु दलइज्जा अह भिक्खूणं जाव नो पडि० ॥३८॥
... छाया- स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा अथ यत् पुनरेवं जानीयात् अशनं वा ४ मृत्तिकावलिप्तं तथा प्रकारं अशनं वा ४ लाभे सति न प्रतिगृण्हीयात्, केवली ब्रूयात् आदानमेतत्, असंयतो भिक्षुप्रतिज्ञया मृत्तिकोपलिप्तं अशनं वा ४ उद्भिन्दन् पृथ्वीकार्य समारभेत् तथा तेजो वायु वनस्पति त्रसकायं समारभेत् पुनरपि अवलिंपन् पश्चात्कर्म कुर्यात्, अथ भिक्षणां पूर्वदृष्टा (एषा प्रतिज्ञा एष हेतुरेतत्कारणमयमुपदेशः) यत् तथाप्रकारं मृत्तिकावलिप्तं अशनं वा लाभे सति- (न प्रतिगृण्हीयात्)। स भिक्षु० अथ यत् अशनं वा ४ पृथ्वीकायप्रतिष्ठितं तथाप्रकारं अशनं वा ४ अप्रासुकम्।स भिक्षुः यत् अशनं वा ४ अप्काय प्रतिष्ठितं चैव, एवं अग्निकायप्रतिष्ठितं लाभे केवली असंयतः भिक्षु प्रतिज्ञया० अग्निं उत्सिच्य निषिच्य अवहृत्य आहृत्य दद्यात्। अथ भिक्षूणां यावत् न प्रतिगृण्हीयात्।
पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा०- साधु अथवा साध्वी गृहपति कुल में प्रविष्ट होने पर। से जं०-यदि यह जाने कि।असणं वा-अशनादिक चतुर्विध आहार।मट्टियाउलित्तं-मिट्टी से लिप्त बर्तन में है, तो। तहप्पगारं