Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ४
५७
उल्लेख किया गया है, तो क्या मुनि इन पदार्थों को ग्रहण कर सकता है? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। . इसका समाधान यह है कि ये दोनों पदार्थ अभक्ष्य होने के कारण सर्वथा अग्राह्य हैं । आगम में इसका स्पष्ट रूप से निषेध किया गया है। इससे स्पष्ट है कि ये दोनों पदार्थ साधु के लिए सर्वथा अभक्ष्य हैं। और संभव है कि प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त उभय शब्द अन्य अर्थ के संसूचक हों।
उपाध्याय पार्श्व चन्द्र जी की मान्यता है कि साधु को मद्य, मांस, मक्खन और मधु लेना नहीं कल्पता । इन शब्दों का प्रयोग केवल सूत्र छेद के समय से हुआ है। इससे गद्य छन्द की प्रामाणिकता सिद्ध होती है।
वृत्तिकार का अभिमत है कि मद्य-मांस की व्याख्या छेद सूत्र के अनुसार समझनी चाहिए। कोई अत्यधिक प्रमादी साधु अतिगृद्धि एवं स्वाद आसक्ति के कारण इनका सेवन न करे। इसके लिए इसका उल्लेख किया गया है। परन्तु विवेकनिष्ठ साधु के लिए मद्य-मांस सर्वथा अग्राह्य है ।
प्रस्तुत सूत्र पर व्याख्या करते हुए उपाध्याय पार्श्व चन्द्र ने मद्य, मांस, मक्खन एवं मधु चारों को तथा वृत्तिकार आचार्य शीलांक ने मक्खन को छोड़कर शेष तीनों को अभक्ष्य बताया है । आगम में मद्यमांस को अभक्ष्य कहा गया है । परन्तु मक्खन एवं मधु को सर्वथा अभक्ष्य नहीं कहा है और आगम में लिखा है कि प्रथम प्रहर में लाए हुए नवनीत (मक्खन) का किसी रोग के कारण चतुर्थ प्रहर भी अंगोपांगों पर विलेपन करना कल्पता है। इससे मक्खन की ग्राह्यता शास्त्र सम्मत सिद्ध होती है । इसी तरह मधु के विषय में भी आगम में बताया है कि एक बार भगवान महावीर ने मधु (शहद) मिश्रित खीर (दूध) से पारणा किया था ।
इससे स्पष्ट होता है कि मद्य एवं मांस साधु के लिए सर्वथा अभक्ष्य है। मक्खन एवं शहद के लिए ऐसी बात नहीं है। निष्कर्ष यह निकला कि साधु को अतिथि रूप से आए हुए साधु के साथ छलकपट एवं भेद-भाव का बर्ताव नहीं रखना चाहिए । निष्कपट भाव से उसका आदर-सत्कार करना
चाहिए. । ·
'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें ।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
१ प्रश्न व्याकरण सूत्र, प्रथम संवर द्वार, सूत्र कृताङ्ग सूत्र, श्रुतः २, अ० २ ।
२
इस विषय पर १० वें उद्देशक में विस्तार से विचार करेंगे।
३
इहां श्री सूत्र मांहिं माखन, मधु, मद्य, मांस शब्द बखाण्या ते स्या भणी साधु तईंए वस्तु अयोग्य छे । तिहां इय कहबो इहां सूत्र छेदना मय मणी आण्या, पर साधु ने ए वस्तु न ल्यइ अथवा इहां जे उचिन्तवई तेह थकी साधु पण उं टल्युं जाणिया छे । - उपाध्याय पार्श्व चन्द्र ।
४ मद्य मांसे छेदसूत्राभिप्रायेण व्याख्यायेये अथवा कश्चिदति प्रमादावष्टबन्धोऽत्यन्तगृध्नु तया मधु, मद्य मांसान्यव्याश्रयेदतस्तदुपादानम् । -आचाराङ्ग सूत्र वृत्ति ।
५
प्रश्नव्याकरण सूत्र, सूत्रकृतांग सूत्र ।
६ नो कप्पड़ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा परियासिएणं तेल्लेणं वा, घएण वा, नवणीएण वा, वसाए वा, अभंगेत्तए वा मक्खेत्तए वा नानत्थ आगाढेहिं रोगायंकेहिं ।
गायाई
भगवती 'सूत्र, शतक १५ ।
- बृहत्कल्प सूत्र, उद्देशक ५ ।