Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन पिण्डैषणा पञ्चम उद्देशक
चतुर्थ उद्देशक में आहार ग्रहण करने की विधि का उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत उद्देशक में भी इसी का और विस्तृत विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम् - से भिक्खू वा २ जाव पविट्ठे समाणे से जं पुण जाणिज्जाअग्गपिंड उक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्गपिंडं निक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्गपिंडं हीरमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिभाइज्जमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिभुंजमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिठविज्जमाणं पेहाए पुरा असिणाइ वा अवहाराइ वा पुरा जत्थपणे समण• वणीमगा खद्धं २ उवसंकमंति से हंता अहमवि खद्धं २ उवसंकमामि, माइट्ठाणं संफासे नो एवं करेजा ॥ २५ ॥
छाया - स भिक्षुर्वा २ यावत् प्रविष्टः सन् तद् यत् पुनरेवं जानीयात् - अग्रपिंडं उत्क्षिप्यमाणं प्रेक्ष्य, अग्रपिंडं निक्षिप्यमाणं प्रेक्ष्य, अग्रपिडं ह्रियमाणं प्रेक्ष्य, अग्रपिण्डं परिभज्यमानं प्रेक्ष्य, अग्रपिण्डं परिभुज्यमानं प्रेक्ष्य, अग्रपिण्डं परित्यज्यमानं प्रेक्ष्य, पुरा अंशितवन्तो वा अपहृतवन्तो वा पुरा यत्रान्ये श्रमण वणीमकाः त्वरितं २ उपसंक्रामन्ति स हंत ! अहमपि त्वंरितं २ उपसंक्रमामि, मातृस्थानं संस्पृशेन्न एवं कुर्यात् ।
पदार्थ - से- वह । भिक्खू वा साधु और साध्वी । जाव - यावत् । पविट्ठे समाणे- गृहपति कुल में प्रवेश करते हुए। से-वह । जं- जो पुण - फिर । जाणिज्जा - आहारादि को जाने । अग्गपिंडं-अग्रपिंड को। उक्खिप्पमाणं-थोड़ा-थोड़ा निकालते हुए को। पेहाए-देखकर। अग्गपिंडं - अग्रपिंड को । निक्खिप्यमाणंअन्य स्थान में रखते हुए को। पेहाए-देखकर । अग्गपिंडं-अग्रपिंड को । हीरमाणं-किसी स्थान पर ले जाते हुए को।पेहाए-देखकर।अग्गपिंडं - अग्रपिंड को | परिभाइज्जमाणं- बांटते हुए को। पेहाए-देखकर तथा । अग्गपिंडंअग्रपिंड को। परिभुंजमाणं खाते हुए को । पेहाए - देखकर । अग्गपिंडं - अग्रपिंड को । परिट्ठविजमाणंपरिष्ठापन करते फैंकते हुए को। पेहाए-देखकर। पुरा असिणाइ वा- पहले श्रमणादि खाकर चले गये अथवा । अवहाराइ वा- पहले श्रमणादि, अग्रपिंड को लेकर चले गए। जत्थऽण्णे - जहां पर अन्य । समण - श्रमण आदि । वणीमगा और भिक्षावृत्ति से निर्वाह करने वाले याचक लोग । खद्धं २ - शीघ्र २ । उवसंकमंति- अग्रपिंड लेने