Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
५३
प्रथम अध्ययन, उद्देशक ४ मूलार्थ- साधु व साध्वी गृहपति के घर में प्रवेश करने की इच्छा रखते हुए यदि इस प्रकार जान लें कि गृहस्थ दूध देने वाली गायों का अभी दोहन कर रहे हैं तथा अशनादिक आहार पकाया जा रहा है- पक रहा है, अभी तक उसमें से किसी दूसरे को नहीं दिया गया, ऐसा जानकर संयमशील भिक्षु आहार ग्रहण करने के लिए उस घर में जाने के लिए न तो उपाश्रय से निकले और न उस घर में प्रवेश करे। किन्तु वह भिक्षु इस बात को जान कर जहां पर न कोई आता-जाता हो,
और न देखता हो, ऐसे एकान्त स्थान में जाकर ठहर जाए। और जब वह इस प्रकार जान ले कि गायों का दोहन हो गया है और अन्नादि चतुर्विध आहार बन गया है तथा उसमें से दूसरों को दे दिया गया है.तब वह साध उस घर में आहार के लिए प्रवेश करे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि यदि किसी गृहस्थ के घर पर गायों का दूध निकाला जा रहा है और अशन आदि चारों प्रकार का आहार पक रहा है और उस आहार में से अभी तक किसी को दिया नहीं है, तो साधु को उस घर में आहार के लिए नहीं जाना चाहिए। यदि गायों का दूध निकाल लिया गया है, आहार पक चुका है और उसमें से किसी को दिया जा चुका है, तो साधु उस घर में आहार के लिए प्रवेश कर सकता है।
इसका कारण यह है कि गायें साधु के वेश को देखकर डर जाएं और साधु को मारने दौड़ें तो उससे साधु के या दोहने के लिए बैठे हुए व्यक्ति के चोट लग सकती है। और दूध निकालते समय साधु को आया हुआ देखकर गृहस्थ यह सोचे कि साधु को भी दूध लेना होगा, अत: वह गाय के बछड़े के लिए छोड़े जाने वाले दूध को गाय के स्तनों में न छोड़कर निकाल लेगा। इससे मुनि के निमित्त बछड़े की अन्तराय लगेगी।
आहार पक रहा हो और उस समय साधु पहुँच जाए तो गृहस्थ उसे जल्दी पकाने का यत्न करेगा उससे अग्नि के जीवों की विराधना (हिंसा) होगी। इस तरह कई दोष लगने की सम्भावना होने के कारण साधु को ऐसे समय में गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश नहीं करना चाहिए। ___... आगम में लिखा है कि आहार आग पर पक रहा हो और गृहस्थ उसे आग पर से उतार कर दे तो साधु को स्पष्ट कह देना चाहिए कि यह आहार मेरे लिए कल्पनीय नहीं है । इससे स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत सूत्र में किया गया निषेध घर में प्रवेश करने की दृष्टि से नहीं, किन्तु आग पर स्थित आहार को लेने के लिए है। गाय के दोहन का प्रथम विकल्प घर में प्रवेश करने सम्बन्धी निषेध को लेकर है और दूसरा विकल्प उस आहार को लेने के निषेध से सम्बन्धित है। इसका स्पष्ट कारण यह है कि गृहस्थ के घर में स्थित पशु भयभीत नहीं होते हों और आहार आदि भी पक चुका हो तो साधु उस घर में प्रवेश करके आहार ले सकता है। साधु को यह विवेक अवश्य रखना चाहिए कि उसके निमित्त किसी तरह की हिंसा एवं अयतना न हो।
इसी विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
.१
दशवैकालिक सूत्र ५,१,६१-६३।